Sunday, July 20, 2014

बार-बार इश्क़ की दुहाई न दीजिये.....

बार-बार इश्क़ की दुहाई न दीजिये..
इतनी भी खूबसूरत बेवफाई न कीजिये...

नज़रो के लव्ज़ ही काफी हैं पढ़ने को 'श्लोक' ..
लबो को तकल्लुफ देकर गवाही न दीजिये..

काटे से भी न कटे दर्द का शज़र कभी ..
ऐसे तो दिल की मिटटी में बिवाई न कीजिये ..

लिखावट मेरे अहसासों की सबको खबर पड़े ..
इतनी भी गाढ़ी कलम की रोशनाई न कीजिये ..

हिस्सा जो रोशन है चाहत का रोशन रहने दो ..
आंधियो के तौफे में तो ये कमाई न दीजिये ..


------------------परी ऍम 'श्लोक'

3 comments:

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