Monday, July 21, 2014

याद आती है......

भूल जाता हूँ भागादौड़ी में पता अपने घरोंदे का..
मगर जब शाम होती है घर की याद आती  है..

चुका देता हूँ खाने की कीमत होटलों में..
मगर माँ के प्यार की रोटी कीमत याद आती हैं..

महफ़िलो में कुछ पल बीत जाते हैं जैसे-तैसे..
मगर तन्हाई में अक्सर वो जीनत याद आती हैं ..

सुनता हूँ जब भी रातो को बजती हुई शेहनाई..
मुझे अपने महबूब की धड़कन याद आती हैं .. 

शहर में आकर बेशक मैं इत्र से नहाया हूँ
मगर गाँव के मिट्ठी की वो खुशबु याद आती हैं

देखता हूँ जब भी किसी की हँसती हुई गृहस्थी
मुझे चाँद याद आती है वो नूरी याद आती है

सागर की लहरो पर उतरता है जब कोई जहाज
मुझे बारिश में छोड़ी हुई कश्ती याद आती है

धूप से बच कर जब छज्जे की मैं ओट लेता हूँ
मुझे बरगद की छाया की ठंडक याद आती है

शौहरत के खातिर खुद को कितना बदल आया
अब अक्सर मस्त-मौला सी वो जिंदगी याद आती है

यहाँ जब मतलबी लोगो से कभी रूबरू होता हूँ
मुझे अपने लोगो की मोहोब्बत तब बहुत याद आती है

------------------परी ऍम 'श्लोक'

 

3 comments:

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