Saturday, December 26, 2015

सितारे रात तन्हाई तुम्हीं को गुनगुनाते हैं

सितारे  रात   तन्हाई    तुम्हीं  को   गुनगुनाते  हैं 
अभी तक याद के जुगनू ज़हन में झिलमिलाते हैं 

नज़र के  सामने गुज़रा  हुआ जब  दौर आता   है 
कई  झरने  निग़ाहों   में   हमारे   फूट   जाते    हैं 

उन्हें कह  दो न इतरायें  ज़रा सी  रौशनी  पाकर 
ये  सूरज  चाँद  तारे  घर  मेरे  पहरा  लगाते  हैं 

नहीं मिलता है सहरा में कभी जज़्बात का दरिया 
शज़र क्यूँ बेवज़ह ही प्यार का इस पर  लगाते हैं 

चले आओ किसी भी सम्त से बनकर हवा साथी 
चमन के  फूल  सारे आपको   शब भर बुलाते हैं 

अरे! इस  आईने  का भी  ज़रा  देखें  बेगानापन 
हमारे अक्स  में ये  आपका  चेहरा  दिखाते  हैं 

लगाकर मैं ये सारी मुश्किलों की तल्ख़ियाँ लब से 
बजाऊँ  यूँ  कि  जैसे  बाँसूरी   कान्हा  बजाते  हैं 

क़यामत तक नहीं मिलती निशानी प्यार की यारो 
मुहब्बत  की  तलाशी में  बदन तक टूट  जाते हैं 

सफ़र  ये  जिंदगानी  का  सफ़र  ऐसा है   मेरी जाँ 
कि मिलती है अगर मंज़िल तो साथी छूट जाते हैं 


© परी ऍम. 'श्लोक' 

Monday, December 21, 2015

समंदर है कहीं सूखी नदी है .....

समंदर है कहीं सूखी नदी है
इसी का नाम शायद जिंदगी है 

बताओ मुस्कुराए कोई कैसे  
ग़मों की गोद में बैठी ख़ुशी है 

अमन के वास्ते मज़हब बनाये 
वो होली खून के पर खेलती है 

गरीबों का लहू पीकर तरक्की
अमाँ हद दर्जे की ये बेहिसी है 

सितम देखो की हर इक दौर में ही 
लुटी सीता, अहल्या, द्रोपदी है 

वो देखो फिर गली के आदमी ने 
हवस में नोच डाली इक कली है 

जो अपराधी था देखो 'दामिनी' का 
वही मुज़रिम अदालत से बरी है  

हमारे इश्क़ के ही तो बदौलत 
तेरे चेहरे पे आयी ताज़गी है 

ज़रा कर बात तू औक़ात वाली 
तेरे बस की कहाँ दरियादिली है 

ख़ुदा तू  हो नहीं सकता कभी भी
फ़क़त तू आदमी है आदमी है 

सियासत के बड़े माहिर खिलाड़ी 
अजी लाशों पे रोटी सेंक ली है 

कज़ा से हम करे कैसी शिकायत 
मिटाती जा रही ये जिंदगी है 

नज़र कमज़ोर बूढी हो गयी पर  
महक से माँ मुझे पहचानती है

मुझे मत मार दुनिया देखने दे 
वो बच्ची कोख़ में से बोलती है 

जुबाँ औ दिल 'परी' बोले बराबर
ये आदत तो हमारी भी बुरी है 
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© परी ऍम. 'श्लोक'