Monday, April 27, 2015

एक वो रात थी...एक ये रात है

एक वो रात थी 
जब हम दोनों की आँखों में 
एक जैसे ख्वाब हुआ करते थे 
हमें एक-दूसरे से ज़रा भी फ़ुरसत न होती थी 
इसकदर एक-दूजे में हम गुम हुआ करते थे 

तुम मेरी साँसों की ख़ुश्बू थे जाना 
हम तुम्हारी धड़कनों की सरगम हुआ करते थे

और …
एक ये रात है 
जो शिकवों के झुरमुट से बाहर नहीं आती 
शाम ढलते ही 
लवें दिल की घुटन से बुझने लगती हैं 
करवटें बदलते हुए अपने बिस्तर पर  
यही सोचती हूँ कि इस साअत तुम्हें 
ख़्याल मेरा आया भी होगा 
या फिर 
वफ़ा मेरी नदारद कर 
धीरे…-धीरे… से मुझे भूल रहे होगे 
और
किसी गैर की बाहों में तुम झूल रहे होगे

फ़क़त 
एक वो रात थी 
एक ये रात है 


दोनों की शक्लें नहीं मिलती आपस में !!
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© परी ऍम. 'श्लोक' 

Wednesday, April 22, 2015

'अहसास एक पल'

आप सभी पाठक मित्रों को बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आप सभी के स्नेह एवं आशीर्वाद से 'अहसास एक पल' साँझा संकलन में मेरी रचनाएं भी शामिल हो पायी हैं। रचनायें जब पुस्तक का रूप लेती हैं तो मन को मीठा-मीठा सा आभास होना स्वाभाविक है। क्योंकि यह मेरी पहली पुस्तक है अन्य रचनाकार मित्रों के साथ तो ख़ुशी और बढ़ जाती है। आपको यह भी बता दूँ कि पुस्तक विमोचन झुंझुनू राजस्थान में हुआ इस अवसर पर मैंने स्वयं मंच संचालन किया जो की ताज़गी भरा अनुभव रहा। झुंझुनू के सभी अखबारों में हमारी चर्चा रही तो बात और मीठी हो जाती है। पुस्तक का कवर आपके साथ साँझा करना चाहूंगी। यदि पाठक मित्र चाहें तो प्रति ले सकतें हैं http://www.flipkart.com/ahsas-ek-pal/p/itme65qc9vwahzkj?pid=9788192493633 इस लिंक पर जाकर।
 
 



अपना स्नेह बनायें रखियेगा।
सादर
परी ऍम. 'श्लोक'
 
 

Wednesday, April 1, 2015

कि शायद आज मेरा दिल टूटा है


हर मंज़र का मिज़ाज़ कड़वा है
कुछ धुंधलाई सी है ज़िन्दगी
आज न तू नज़र आया मुझे
और न तेरे आँखो में कहीं मैं दिखी
ख़्वाबों के चेहरे का रंग उड़ गया 
हकीकत ने घूर कर कुछ यूँ देखा 
ये आसमान भी आज नीला नहीं
रात सितारों की गुफ़तगू भी नहीं
आज जाने क्यों इतना सन्नाटा है
मानिंद मातम मना रहा है कोई
खिलौना ज़ज़्बात का यहाँ-वहाँ बिखरा है
कोई जिद्दी बच्चा बे-सबब रूठा है  

कि शायद आज मेरा दिल टूटा है !!  

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© परी ऍम. 'श्लोक'