Monday, April 27, 2015

एक वो रात थी...एक ये रात है

एक वो रात थी 
जब हम दोनों की आँखों में 
एक जैसे ख्वाब हुआ करते थे 
हमें एक-दूसरे से ज़रा भी फ़ुरसत न होती थी 
इसकदर एक-दूजे में हम गुम हुआ करते थे 

तुम मेरी साँसों की ख़ुश्बू थे जाना 
हम तुम्हारी धड़कनों की सरगम हुआ करते थे

और …
एक ये रात है 
जो शिकवों के झुरमुट से बाहर नहीं आती 
शाम ढलते ही 
लवें दिल की घुटन से बुझने लगती हैं 
करवटें बदलते हुए अपने बिस्तर पर  
यही सोचती हूँ कि इस साअत तुम्हें 
ख़्याल मेरा आया भी होगा 
या फिर 
वफ़ा मेरी नदारद कर 
धीरे…-धीरे… से मुझे भूल रहे होगे 
और
किसी गैर की बाहों में तुम झूल रहे होगे

फ़क़त 
एक वो रात थी 
एक ये रात है 


दोनों की शक्लें नहीं मिलती आपस में !!
_________________

© परी ऍम. 'श्लोक' 

15 comments:

  1. समय या अहम् ... कुछ तो होता है जो जुदा कर देता है एक से ख्वाबोब का सिलसिला ...
    अच्छी गहरी रचना ..

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  2. एहसास दिल तोड़ता है ...

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  3. रात गहरी
    गहरे एहसास
    .........सुंदर

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  4. करवटें बदलते हुए अपने बिस्तर पर
    यही सोचती हूँ कि इस साअत तुम्हें
    ख़्याल मेरा आया भी होगा
    या फिर
    वफ़ा मेरी नदारद कर
    धीरे…-धीरे… से मुझे भूल रहे होगे
    और
    किसी गैर की बाहों में तुम झूल रहे होगे

    फ़क़त
    एक वो रात थी
    एक ये रात है


    दोनों की शक्लें नहीं मिलती आपस में !!
    ऐसी जुदा रातों की सीरत एक सी कहाँ होती है! बेहद गंभीर रचना परी जी ! आप बीच बीच में डुबकी लगा जाती हैं शायद समुन्दर से मोती चुन के लाती हैं ! बेहतरीन पोस्ट बनाने के लिए

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  5. भावनाओं के समंदर में डुबकी लगाती भावपूर्ण रचना

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  6. अंधकार का कोई शक्ल नहीं होता. सुंदर भावपूर्ण कविता.

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  7. मन को विगलित करती बेहतरीन अभिव्यक्ति !

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  8. बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.
    नई पोस्ट : तेरे रूप अनेक

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  9. बहुत बढ़िया रचना

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  10. भावपूर्ण व् सुंदर......

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  11. भावपूर्ण रचना

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  12. "वफ़ा मेरी नदारद कर
    धीरे…-धीरे… से मुझे भूल रहे होगे "..........खूबसूरत अहसास...वाह !!

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  13. एक ये रात है
    जो शिकवों के झुरमुट से बाहर नहीं आती .

    वक्त भी कहाँ से कहाँ ताक ले जाता है. बहुत सुंदर भावपूर्ण अलफ़ाज़. बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिए.

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  14. सुंदर भावाभिव्यक्ति

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