Friday, July 31, 2015

रूह जलती है दिल दुःखता है

रूह जलती है दिल दुःखता है
याद बन के वो जब उठता है
कितनी बारिश ये सावन ले गुज़री
प्यास दिल का मगर न बुझता है
आईना हो गया है वज़ूद मेरा
लम्हों की ठोकर से जो अब टुटता है
किसी के हो नहीं पाये बरसो
कि उनका घर तो रोज़ बसता है
मुझी में टूट कर ज़मींदोज़ हुए
मेरे अरमानों का भी कब्रिस्तां है
मेरे माज़ी के वो पन्नें मत खोलो
हर लव्ज़-ओ-स्याही से गम रिसता है
उनसे रिश्ता है मेरी साँसों का,
जज़्बातों का, एहसासों का 
है वो मेरी हर इक अदा, हर बयां में
है वो मेरी हर इक शायरी और ग़ज़ल
कहो मैं कहाँ पर छिपा लूँ उनको
जो मेरी आँखों में साफ़ दिखता है

रूह जलती है दिल दुःखता है।

___________________
© परी ऍम.'श्लोक'

Meaning
माज़ी -  अतीत (Past)

9 comments:

  1. बहुत खूब ... प्रेम भी छुपाये नहीं छुपता है ...

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  2. वाह ! बहुत सुन्दर !

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  3. लाज़वाब ......
    कहो मैं कहाँ पर छिपा लूँ उनको
    जो मेरी आँखों में साफ़ दिखता है
    वाह वाह ......

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01-08-2015) को "गुरुओं को कृतज्ञभाव से प्रणाम" {चर्चा अंक-2054} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    गुरू पूर्णिमा तथा मुंशी प्रेमचन्द की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. हर लव्ज़-ओ-स्याही से गम रिसता है
    bahut khub mohabbat ka rang bikhera hai aapne!

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  6. कहो मैं कहाँ पर छिपा लूँ उनको
    जो मेरी आँखों में साफ़ दिखता है

    बेहद खूबसूरत

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  7. wah ! pari bahut sundar .....puri rachna kabile tarif

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  8. उसका तो रोज घर बसता है
    क्या अपना प्रेम इतना सस्ता है
    कि संगदिल के लिए धड़कता है
    मिटा दो उसके याद की हर लकीरें
    फ़ेंक वह आईना जो रोज दरकता है
    क्यों दिल दुःखता उस नाचीज़ वास्ते
    वो तो अपनी नई दुनिया में रमता है
    दिखा उस बेवफा को तेरी दुनिया में भी
    कितना रंग इन्द्रधनुष सा रोज बरसता है ,

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  9. जज्बातों में नहीं हकीकत लमहा-लमहा, तन्हाई में तन्हा तनकर चलता तन्हां |
    और -
    रूह जलती है जलती रहे मानवता का दामन जो थाम्हे हैं हम |
    लेखनी में मेरे खुदा वह धार दो दानवता के दाँव को मात दें हम|| 

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