सितारे  रात   तन्हाई    तुम्हीं  को   गुनगुनाते  हैं 
अभी तक याद के जुगनू
ज़हन में झिलमिलाते हैं 
नज़र के  सामने गुज़रा  हुआ
जब  दौर आता   है 
कई  झरने  निग़ाहों   में   हमारे   फूट   जाते    हैं 
उन्हें कह  दो न इतरायें  ज़रा सी  रौशनी  पाकर 
ये  सूरज  चाँद  तारे  घर  मेरे  पहरा  लगाते  हैं 
नहीं मिलता है सहरा में
कभी जज़्बात का दरिया 
शज़र क्यूँ बेवज़ह ही
प्यार का इस पर  लगाते हैं 
चले आओ किसी भी सम्त से
बनकर हवा साथी 
चमन के  फूल  सारे आपको   शब भर बुलाते हैं 
अरे! इस  आईने  का भी  ज़रा  देखें  बेगानापन 
हमारे अक्स  में ये
 आपका  चेहरा  दिखाते  हैं 
लगाकर मैं ये सारी
मुश्किलों की तल्ख़ियाँ लब से 
बजाऊँ  यूँ  कि  जैसे  बाँसूरी   कान्हा  बजाते  हैं 
क़यामत तक नहीं मिलती
निशानी प्यार की यारो 
मुहब्बत  की  तलाशी में  बदन तक टूट  जाते हैं 
सफ़र  ये  जिंदगानी  का  सफ़र  ऐसा है   मेरी जाँ 
कि मिलती है अगर मंज़िल
तो साथी छूट जाते हैं 
© परी ऍम.
'श्लोक' 
 
