Wednesday, August 12, 2015

मुहब्बत इक इत्तिफ़ाक़ है

मुहब्बत इक इत्तिफ़ाक़ है 
सोची समझी कोई कोशिश नहीं  
ये कब, किस वक़्त, किसके लिए  
हमारे अंदर पनप जाए मालूम नहीं 
ये दिल,धड़कन या फिर 
जिस्म का रिश्ता नहीं
एक रूहानी रिश्ता है 
जो जिस्म ढलने के बाद भी 
कायनात में रोशन रहता है  
जिंदगी के पहले दिन से  
मुहब्बत हमारे अंदर मौजूद होती है  
मगर इसे जागने के लिए 
महबूब के इक नज़र की ज़रूरत होती है 
मुहब्बत की पैदाइश ज़रूर होती है
मगर मौत नहीं 
ये वक़्त की आँच पर पक कर निखरता है
मरता कभी नहीं 
इसके लिए ज़रूरी नहीं 
एक जैसे ख़्यालात का होना 
दो अलग दिशाओं का मिलन है मुहब्बत 
इसका कोई रूप - रंग नहीं
मुक़द्दस एहसास है मुहब्बत 
कभी रोज़े का दिन है
तो कभी चाँद रात है मुहब्बत 
मुहब्बत प्यास है 
जो हर जुबां पर कायम है 
मुहब्बत खुद के लिए जीना नहीं 
बल्कि किसी और को पल-पल जीना है
मुहब्बत इक अटूट विश्वास है
बेहद सुकूं है इसके पहलु में  
और बेहद संगीन अज़ाब है 
मुहब्बत 

मेरी तरसी हुई निगाहों का एक ख़्वाब है।

© परी ऍम. ''श्लोक

3 comments:

  1. न केवल इत्तिफाक़ अर्थात संयोग वरन यह एक पूर्व निर्धारित प्रयत्न अथवा फल भी है । अत्यंत रसपूर्ण रचना ।

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  2. वाह .. बहुत ही लाजवाब नज़्म ...

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