Sunday, August 2, 2015

एक ही साँचे में

हिन्दू का खून काला क्यूँ नहीं है 
मुस्लिम का नीला, सिक्खों का गुलाबी 
और ऐसे ही जुदा धर्मों के लोगों का लहु 
इक दूसरे से जुदा क्यूँ नहीं है 
काश ! हर किसी के माथे पर 
ख़ुदा ने गहरा के लिख दिया होता 
कि वो किस मज़हब का है
या फिर चेहरा ही थोड़ा टेढ़ा-मेढ़ा बना दिया होता 
किसी की नाक सर पे लगा दी होती 
किसी का कान माथे पर चिपका दिया होता 
और किसी की आँखों को होंठो पे फिट कर देता 
कम से कम इतना किया होता 
हर फ़सादात, हर आफ़त, 
हर आतंकवादी हमले के बाद 
मारे गए लोगों  की लाश पर 
बहने वाला आंसू का रंग ही बदल दिया होता
मैं सोचती हूँ कि 
मज़हब का नाम लेकर आपस में लड़ने-मरने वाले 
अपने-आपको इक-दूसरे से अलग समझने वाले 
ज़मीन के इन दिमाग़ी बीमार नमूनों को 

ख़ुदा ने एक ही साँचे में क्यूँ ढाल दिया। 


_________________

© परी ऍम. "श्लोक" 

4 comments:

  1. शायद खुदा को नहीं पता था इतना बवाल मचने वाला है उसी के नाम पे ...

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  2. उसे क्या पता की इंसान इतने सारे धर्म बना बैठेंगे..... हर धर्म की समस्या भी यही है जितना धर्म में उलझेंगे उतना भटक जायेंगे

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  3. मज़हब का नाम लेकर आपस में लड़ने-मरने वाले
    अपने-आपको इक-दूसरे से अलग समझने वाले
    ज़मीन के इन दिमाग़ी बीमार नमूनों को

    ख़ुदा ने एक ही साँचे में क्यूँ ढाल दिया।
    ​किस किस को समझाइएगा परी जी ?

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  4. वास्तव में ऐसे इन्सानों का पहचान चिह्न होना चाहिए जो आदमी आदमी में फ़र्क करते हैं ।

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