Saturday, November 29, 2014

ज़रा...... वक़्त दो !!


अभी रुको
ज़रा मोहलत दो हमें
दिल को मनाने दो
रूह को बुझाने दो
कह दूँ उन्हें
कमरा खाली करें
सामान ले जायें अपना
न परछाई छोड़े
न निशान कोई
न ही कमी अपनी

अभी ज़रा वक़्त दो
अभी इन दीवारो से टकराएं है
बेहद चोट खाएं है
ज़रा संभलने दो
उठ के चलने दो
जो उसने अज़ाब दिए हैं
अश्क-ए-तेज़ाब दिए हैं
उससे शफा पाने दो
दर्द से निकल जाने दो


हम यकीनन फिर से सौदा करेंगे
हर रस्मे निभाएंगे
घर भी बसाएंगे
सुनेंगे तुम्हारी भी
करेंगे तुम्हारी भी
फिर
जिंदगी से हाथ मिलाने की कोशिश करेंगे
हर एक शर्त निभाने की कोशिश करेंगे

मगर
दरख्वास्त है इतनी
यादो को मिटाने के लिए
उनको भूल जाने के लिए
ज़रा...... वक़्त दो !!

___________________
© परी ऍम 'श्लोक'

13 comments:


  1. मगर
    दरख्वास्त है इतनी
    यादो को मिटाने के लिए
    उनको भूल जाने के लिए
    ज़रा...... वक़्त दो !!
    ........
    बेहद भावुक
    बेहद सुन्दर

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  2. तिरे शहर का गज़ब का मिजाज़ है
    के भूल जाने का रिवाज़ है

    अज़ीज़ जौनपुरी

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  3. यादें वक्त के साथ धुँधली हो जाती है ।खुद से परे जाना आसान हो सकता है, खुद को भूल पाना नही...
    और प्यार खुद की अभिव्यक्ति होती है।
    नम नम से भाव ।

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  4. मगर
    दरख्वास्त है इतनी
    यादो को मिटाने के लिए
    उनको भूल जाने के लिए
    ज़रा...... वक़्त दो !!
    ...बहुत खूब...लेकिन क्या यादों को कभी भूल पाते हैं. वक़्त के साथ वे धूमिल हो सकती हैं, लेकिन दिल के किसी कोने में कहीं न कहीं छुपी रहती ही हैं...

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  5. वाह ! बहुत खूबसूरत सा वादा खुद से ! यह शै भी कुछ आसान नहीं ! इसके लिये भी बहुत हिम्मत और हौसले की ज़रूरत होती है ! सुन्दर प्रस्तुति !

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  6. Your poetry never ceases to amaze me Pari..always so beautiful :)

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  7. बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.

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  8. भावुकता से लबालब दरख्वास्त.... कौन मना कर सकता है भला !!!!

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  9. अभी ज़रा वक़्त दो
    अभी इन दीवारो से टकराएं है
    बेहद चोट खाएं है
    ज़रा संभलने दो
    उठ के चलने दो
    जो उसने अज़ाब दिए हैं
    अश्क-ए-तेज़ाब दिए हैं
    उससे शफा पाने दो
    दर्द से निकल जाने दो
    ​भावनाओं से सराबोर रचना परी जी

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  10. बहुत खूब ...
    पर वक्त कहाँ देती है नियति ...

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  11. उम्दा लेखन है आपका ..........................हर शब्द अपने आपमें ह्रदय को कचोटता है ................बेहतरीन पंक्तियां ........................अभी ज़रा वक़्त दो
    अभी इन दीवारो से टकराएं है
    बेहद चोट खाएं है
    ज़रा संभलने दो
    उठ के चलने दो
    जो उसने अज़ाब दिए हैं
    अश्क-ए-तेज़ाब दिए हैं
    उससे शफा पाने दो
    दर्द से निकल जाने दो

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  12. मगर
    दरख्वास्त है इतनी
    यादो को मिटाने के लिए
    उनको भूल जाने के लिए
    ज़रा...... वक़्त दो !!....... बहुत गहरे तक छु गई

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