Sunday, June 21, 2015

आप जबसे हमारे ख़ुदा हो गए - ग़ज़ल

आप  जबसे   हमारे   ख़ुदा  हो   गए
दिल के अरमां सभी बा-सफ़ा हो गए

करके  हमसे कयामत  के वादें  सनम 
छोड़  राहों  में   ही  लापता  हो   गए

भूलकर   भी   न  लौटेंगे   तेरी   गली
अब बहुत तुम से जां हम खफ़ा हो गए

हो  मुबारक़   तुम्हें   ज़श्न  जारी   करो
इश्क़  से  मेरे   जाओ   रिहा   हो  गए

हम  वफ़ा  के  चलन  को  निभाते  रहे
और   तुम  आदतन   बेवफ़ा  हो   गए

कर    हवाले   मुझे   मौत   के   बारहा
जिंदगी   बोलकर  वो   जुदा   हो  गए

जो   बनायें   गए    थे   नियम   कायदे
आज  उनके  ही  हाथों   फना  हो  गए
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© परी ऍम. 'श्लोक'

Thursday, June 11, 2015

ये ज़रूरी तो नहीं

ये ज़रूरी तो नहीं कि 
मुझपर रोज़ मेहरबां हो ख़ुदा 
उसके दर पर भी तो लाखों सवाली होंगे 
ये ज़रूरी तो नहीं कि
रोज़ मेरे जज़्बातों को मिलते रहे लव्ज़ नए 
और हर रोज़ ख़्यालों को 
तेरी गली में आने की इज़ाज़त हो 
यूँ रोज़ दरीचे का पर्दा हटा मिल जाए 
चाँद मुझे ऐन चमकता हुआ दिख जाए

कभी ये भी तो हो सकता कि 
खाली-खाली शब-औ-सहर गुज़र जाए 
कुछ सूझे न मुझे कहने को और दिन मर जाए 

ये ज़रूरी तो नहीं कि
दिल मेरी उंगलियों का साथ दे हरदम 
कलम दिल की तमाम उलझन समझे और मैं रोज़ लिखूं
ये ज़रूरी तो नहीं !!

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© परी ऍम. 'श्लोक'  

Tuesday, June 9, 2015

आधा-अधूरा सा

कसमें हैं , न वादें , न घंटों गुफ़्तगू का दौर 
वो सिलसिले भी नहीं हसीन मुलाकातों के दरमियान 
जुल्फों के बादल हैं और न तेरी बाहों का टेक 
हिज्र के मौसम में बेताबियों की आंधी 
न तन्हाईओं की वादी में कहीं यादों की गूँज 
जागती रातों में सितारों की गिनती नहीं 
और न उनके टूटने पर लब से निकली दुआ 
न तेरे लम्स की खुश्बूं है कहीं फ़ज़ाओं में 
न तेरे आने की मुझमें उम्मीद कोई बाकी है 
ख़्वाब सिमटे हुए हैं दिल उधड़ा हुआ है 
एक प्यार का एहसास है बहुत 
आधा-अधूरा सा। 
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© परी ऍम. 'श्लोक' 

Tuesday, June 2, 2015

दिल अज़ीज़ रिश्ता

उसके सर पर गहरे घाव हैं
वो अब कुछ कुछ मुझे भूल गया है 
हथेलियां जख्मी हैं, 
उंगलियां टूटी हुई, लब चुप चुप से   
वो दामन पकड़ के रोकता है और 
न जाने की इज़ाजत देता है 
पलकों से इशारा करके  
न ही कोई उम्मीद देता है मुझे
जब वो पहली दफ़ा मिला था मुझे 
उसकी आँखों में गज़ब ख़ुशी थी 
लेकिन आज उन्हीं आँखों में बेहोशी है 
लोगों ने इस हालत में पाकर बाख़ूब लूटा है इसे 
कोई नंगा कपड़े उतार ले गया 
किसी चोर ने बटुआ मार लिया....... 

शरीर पथराया हुआ सा है उसका 
मगर उसे छूकर महसूस किया है मैंने 
कुछ जान है जो अब भी बाकी है 
सच बहुत मारा है हालात और वक़्त ने 
अपने कटीले चाबुक से मासूम को 
कि देखो आज हमारा दिल अज़ीज़ रिश्ता 
हॉस्पिटल के आई. सी. यू. में भर्ती है। 
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© परी ऍम. 'श्लोक'  

वो कभी नहीं थकता था

वो कभी नहीं थकता था जो आज टूट गया है 
अपना साया ही ज़िस्म का खून चूस गया है 
जिसने गीले में सोकर सूखा हमें दिया बिस्तरा 
पाला हमें अभाव में भी मुस्कुरा के इस तरह 
ज़रा सा रो भी दें तो घंटो जो मनाया करते थे 
हर हाल में साथ हमारा जो निभाया करते थे 
उम्र लम्बी हो इसके खातिर माँ 
जाने कितने ही उपवास करती थी 
जो चेहरे से हमारे हर जज़्बात पढ़ती थी 
बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए 
जिस बाप ने अपनी झुलसायी जवानी 
उनके लिए जिस माँ ने भूख प्यास तक मारी  
जो बरसों उठाये फिरता रहा कांधो पे सवारी

जब बूढ़े हुए तो वो ज़िन्दगी के रोग हो गए 
माँ-बाप बच्चों के कांधों पर आज बोझ हो गए। 
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© परी ऍम. 'श्लोक'


Monday, June 1, 2015

मेरे अंदर कोई दरिया ज़रूर है।

तन्हाईयों में शोर सा मचता है
दिल  आवाज़ों से सहम जाता है
सीने में उफान सा उठता है
सब्र की चट्टान से टकराता है
बेचैन मौजें बहुत दूर तक जाती हैं
सुकूं का आशियाँ बिखेर आती हैं
रेज़ा-रेज़ा जीने का हौसला बुनती हूँ
मगर जब याद तू आता है
फिर गम बाज़ कब आता है ?
उदासियों का मुंजमिद सैलाब पिघलता है
आँखों की ढ़लानों से गिरता है
रूह की तितलियाँ भीग जाती हैं
रूमालों की कश्तियाँ डूब जाती है


मेरे अंदर कोई दरिया ज़रूर है।

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© परी ऍम. 'श्लोक' 

Sunday, May 31, 2015

सांवली लड़की को

समंदर दर्द का ओक में थामें 
सहरा-ए-ज़िन्दगी की प्यास बुझाते हुए 
घटायें पलकों के दरीचे पर टाँगे 
शब तन्हाइयों में किसी की याद पर गिराते हुए 
माथे से उदासियों का पसीना पोंछते हुए 
किसी शनासा शक्स को सोचते हुए 
स्याही पीते हुए हर्फ़ बहाते हुए 
कलम से तो कभी 
पन्नो को हाल-ए-दिल सुनाते हुए
किताबों के वरक़ पलट सिसकियाँ भरते हुए 
निगाहों के मकां में महज़ इंतज़ार रखे हुए 
चुपके से किसी के नाम का कलमा पढ़ते हुए 

उस सांवली लड़की को 
मैंने जब भी देखा है बस ऐसे ही देखा है 

मोहब्बत के उस एक रोज़ के बाद...... !!
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© परी ऍम. 'श्लोक' 

Saturday, May 30, 2015

ए पागल लड़की ................© परी ऍम. "श्लोक"

एक दिन मैंने प्यार में गुम हुई 
किसी लड़की को नसीहत दी थी 
उसे कहा था 
ए पागल लड़की 
इश्क़ में यकीन का दामन न छोड़ 
ज़रा सी ढील से एहसास बिगड़ जाते हैं 
जलन न रख वो गर तेरा है 
तो कोई तुझसे छीन नहीं सकता 
मुझे मालूम क्या था 
जिंदगी के अगले मोड़ पर 
उस लड़की से 
मेरी जगह बदल दी जायेगी 
और नसीहत देने वाली वो लड़की 
किसी के प्यार में गुमशुदा हो जाएगी !!

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© परी ऍम. "श्लोक"  

Sunday, May 17, 2015

गुलज़ार साहब के लिए ........ © परी ऍम. "श्लोक"

ज़ेहन जब भारी तबाही से गुज़रता है
मैं आकर ठहर जाती हूँ
तुम्हारी नज़्म की गुनगुनी पनाहों में
और खुद को महफूज़ कर लेती हूँ तमाम उलझनों से
आवाज़ जो हलकी सी मेरे जानिब आई थी कभी
उसे रखा है संभाल के कच्ची उम्र से अब तक
वक़्त बे-वक़्त पहन लेती हूँ उसे कानों में 
तुम्हारे ख़्यालों से उभरे हुए लव्ज़ों की रोशनी
अपनी आँखों से छूकर उतार लेती हूँ रगों में
गहरे एहसास में भीगें हुए पन्नों में डूबकर
मैं कुछ पल को भूल जाती हूँ ज़िन्दगी के सारे सितम

तुम्हें पढ़ती हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है
वरना.... दुश्वारियां बहुत है मेरे जीने में।

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© परी ऍम. "श्लोक"  

Thursday, May 14, 2015

उसके पास भी सांसें थी ....

उसके पास भी सांसें थी 
मगर वो अपने आपको रोज़ कोसता था 
तारों से शिफ़ा मांगता था 
आँखें थी मगर सपनें देखने से डरता था 
रोज़ पहुँच जाता था वो पागल 
सड़क के बीचो-बीच बागवानी करने 
ज़िन्दगी के हर दिन की कीमत अदा करने 
एक दिन फूल लगाने वाले उसके हाथों को 
कोई अन्धा मुसाफ़िर लेकर चला गया 
सुना है आज 
ख़ुदा ने उसकी गुज़ारिश भी सुन ली   
तेज़ रफ़्तार किसी गाड़ी के पहिये में 
बैठ के चला गया बिन बताए किसी को 
उसका पूरा घर उसे सफ़ेद चादर तले ढूंढ रहा है। 

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© परी ऍम. 'श्लोक' 

Monday, April 27, 2015

एक वो रात थी...एक ये रात है

एक वो रात थी 
जब हम दोनों की आँखों में 
एक जैसे ख्वाब हुआ करते थे 
हमें एक-दूसरे से ज़रा भी फ़ुरसत न होती थी 
इसकदर एक-दूजे में हम गुम हुआ करते थे 

तुम मेरी साँसों की ख़ुश्बू थे जाना 
हम तुम्हारी धड़कनों की सरगम हुआ करते थे

और …
एक ये रात है 
जो शिकवों के झुरमुट से बाहर नहीं आती 
शाम ढलते ही 
लवें दिल की घुटन से बुझने लगती हैं 
करवटें बदलते हुए अपने बिस्तर पर  
यही सोचती हूँ कि इस साअत तुम्हें 
ख़्याल मेरा आया भी होगा 
या फिर 
वफ़ा मेरी नदारद कर 
धीरे…-धीरे… से मुझे भूल रहे होगे 
और
किसी गैर की बाहों में तुम झूल रहे होगे

फ़क़त 
एक वो रात थी 
एक ये रात है 


दोनों की शक्लें नहीं मिलती आपस में !!
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© परी ऍम. 'श्लोक' 

Wednesday, April 22, 2015

'अहसास एक पल'

आप सभी पाठक मित्रों को बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आप सभी के स्नेह एवं आशीर्वाद से 'अहसास एक पल' साँझा संकलन में मेरी रचनाएं भी शामिल हो पायी हैं। रचनायें जब पुस्तक का रूप लेती हैं तो मन को मीठा-मीठा सा आभास होना स्वाभाविक है। क्योंकि यह मेरी पहली पुस्तक है अन्य रचनाकार मित्रों के साथ तो ख़ुशी और बढ़ जाती है। आपको यह भी बता दूँ कि पुस्तक विमोचन झुंझुनू राजस्थान में हुआ इस अवसर पर मैंने स्वयं मंच संचालन किया जो की ताज़गी भरा अनुभव रहा। झुंझुनू के सभी अखबारों में हमारी चर्चा रही तो बात और मीठी हो जाती है। पुस्तक का कवर आपके साथ साँझा करना चाहूंगी। यदि पाठक मित्र चाहें तो प्रति ले सकतें हैं http://www.flipkart.com/ahsas-ek-pal/p/itme65qc9vwahzkj?pid=9788192493633 इस लिंक पर जाकर।
 
 



अपना स्नेह बनायें रखियेगा।
सादर
परी ऍम. 'श्लोक'
 
 

Wednesday, April 1, 2015

कि शायद आज मेरा दिल टूटा है


हर मंज़र का मिज़ाज़ कड़वा है
कुछ धुंधलाई सी है ज़िन्दगी
आज न तू नज़र आया मुझे
और न तेरे आँखो में कहीं मैं दिखी
ख़्वाबों के चेहरे का रंग उड़ गया 
हकीकत ने घूर कर कुछ यूँ देखा 
ये आसमान भी आज नीला नहीं
रात सितारों की गुफ़तगू भी नहीं
आज जाने क्यों इतना सन्नाटा है
मानिंद मातम मना रहा है कोई
खिलौना ज़ज़्बात का यहाँ-वहाँ बिखरा है
कोई जिद्दी बच्चा बे-सबब रूठा है  

कि शायद आज मेरा दिल टूटा है !!  

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© परी ऍम. 'श्लोक'

Wednesday, March 25, 2015

मेरा शायर


हाँ ! माना की तुम्हारा चेहरा
उस शायर से मिलता है
जिसने मुझे
मोहब्बत में उम्र-क़ैद दी है
मगर तुम्हारी आँखों में
वफ़ा के वो रंग नहीं
होंटो पे हज़ारों नाम है एक मेरे सिवा
उंगलियों में मुझे छूने की तड़प नहीं
बाहों में मुझे भरने की ख्वाइश भी नहीं
ज़ेहन में कई ख़्याल है हम नहीं
शब न तो तनहा है तुम्हारा
न है तुम्हारी दुनिया वीरानी है मुझ बिन


मैं तुम्हें नहीं जानती
तुम बहुत अज़नबी से हो


देखो !
मैंने बेहद मुश्किल उठाई है
उसके दर तक आने को
हिज्र कैसे गुज़ारा है ये बात न पूछो


बताओ ना ! मुझे
मेरे शायर को तुमने कहाँ छिपा रखा है?

सर्वाधिकार सुरक्षित : परी ऍम. 'श्लोक'

Monday, March 23, 2015

कहाँ हूँ मैं ?


कुछ ब्लॉग पढ़ने वाले का पाठक मित्रों का सन्देश मिला। उन्होंने कई दिन से ब्लॉग पर मुझे न पाकर पूछ ही लिया परी जी आपने लिखना बंद कर दिया है क्या ? मन गदगद हो गया की मेरे पाठक मेरी रचनाओं की प्रतीक्षा करते हैं। माफ़ी चाहती हूँ मित्रों अबके ऐसा नहीं होगा फेसबुक पर पोस्ट करते-करते यहाँ के पाठको को निराश करने का खेद है मुझे।

मेरी कलम नहीं रुकेगी जब तक है जान जीने की वजह ही कैसे रोक सकती हूँ मैं। आगे से आपको निराश नहीं करुँगी समय समय पर पोस्ट करती रहूंगी। एक रचनाकार के लिए उसके पाठक उसके भगवान होते हैं वो नहीं तो हम नहीं। आप सबके सन्देश का शुक्रिया। आप स्वस्थ रहे खुश रहे और मेरी रचना पढ़ते रहे।

आप सबके समक्ष मेरी नज़्म प्रस्तुत है ......

तुम्हारे अना से टकरा कर टुकड़ा-टुकड़ा हूँ मैं
मानिंद की डायरी का पुराना पन्ना कोई फटा हूँ मैं
नज़्म हूँ कोई भूली-बिसरी जो तुझे याद नहीं
तेरी महफ़िलों का भी न कोई नाम-ओ-निशां हूँ मैं
हर सम्त मैं-मैं का सुनती हूँ कि धुँआ उठता है
हम के रास्तों में जाने कहाँ गुमशुदा हूँ मैं

बताओ! गुलाबी दुप्पटे के झांकती हुई
वो औरत अगर कोई और है
रातों में सेलफोन का दावेदार कोई है
तेरी लबों पे तलाश की प्यास अब भी बाकी है
ख्वाबों में भी तेरे महज़ मुकाम आया करते हैं
तुम्हारे महकती रोशन लव्ज़ों से अलावा फिर
अंधी-अपाहिज बुझी कसमें-वादों अलावा फिर
तुझमें दिखती नहीं ....न ही मेरे पास हूँ मैं
अगर कहीं नहीं हूँ तो फिर आखिर कहाँ हूँ मैं....!!


सर्वाधिकार सुरक्षित : परी ऍम. 'श्लोक'

Tuesday, February 24, 2015

शाम का चेहरा

शाम का चेहरा उतरा हुआ सा है
आँखों की रोशन लवें बुझी हैं
रात के कब्ज़े में संतरी लम्हें चले आएं
उदास हवाएं दरख्तों से नीचे नहीं उतरी
नींद के जुगनू बागो में टहलने नहीं आये
खामोश हैं सदायें सारी
सुन्न है आलम सारा
कोई आहट नहीं ..सरसराहट नहीं...
 
मैंने उम्मीद के तिनके जलाएं हैं गीली माचिस से
मगर दूर तक बस्ती पर जुल्मतों का ही साया हैं
आज फिर आस्मां को घटाओं ने घेर रक्खा है
आज फिर मुझसे मिलने न चाँद आया है !!
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©परी ऍम. 'श्लोक'

Tuesday, February 10, 2015

"तन्हाई"

 
बजी न घंटियाँ सेलफोन की ज़वाल तक
रात भी न कोई राब्ता रहा तुमसे
कल इतवार भी सन्नाटें दायें-बायें चिपके रहे
आँखों के परदे से दिल की झील टपकती रही
पैदल सवाल ज़ेहन के गुर्फे में मचलते रहे 
तुमपर फ़ना होने की आरजुओं ने जबसे करवट ली
अज़ब सी अज़ाब की हिरासत में आ गए हैं
सुकून के पहलुओं से बेचैनियों की गर्दिश में आ गए हैं
मेरे आईने मेरी पहचान में नाकाम रहते हैं
और हम तेरी तलाश में सुब्ह-ओ-शाम रहते हैं
महज़ वीरानियाँ भटकती हैं पूरी बस्ती में
कही नहीं नज़र आता है साया तक तेरा
मेरा हमसाया होने का दम भरने वाले ज़रा बता
गमज़दा-गमज़दा ये रानाई क्यों हैं ?
अगर तुम साथ हो तो फिर ये तन्हाई क्यों हैं ? 
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© परी ऍम. 'श्लोक'
मायने :-
ज़वाल = दोपहर बाद
राब्ता = संपर्क
गुर्फे = अपार्टमेंट

Friday, January 30, 2015

बच के रहना....

 
 
ख़्वाबों के देवताओं की बलि चढ़ाते हैं
अरमानों की चिताओं को तेज़ाब से जलाते हैं
रूह की नब्ज़ पर आरियां चलाते हैं
साँसों में कतरा-कतरा ज़हर घोल जाते हैं
कुचलते हैं हाथी पैर तले नाज़ुक से ज़ज़्बात
ऐतबार के तबस्सुम का खून पी जाते हैं
मनमर्ज़ी की मीनार जबरन अक्स पर बनाते हैं
बना के ज़रा सी बात को बवाल कहर ढ़ाते हैं
मासूम सी शक्ल लिए फिरते हैं फ़ज़ाओं में
अक्सर सीना ठोंक के दावे ये बेहिसाब करते हैं
जिनके साये गहरे तीरगी को भी हैरान करते हैं

बच के रहना की शहर में आज-कल
ऐसे लोग अपने आपको मर्द ज़ात कहते हैं !!
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© परी ऍम. 'श्लोक'


Wednesday, January 21, 2015

तुम किसी के बाप की जागीर नहीं हो


बिलख रही है
दुबक के किसी कोने में
रिश्तों के नाम पर
खिलौना बनी जा रही है
जज़्बातों की सूली पर
सुबह-ओ-शाम चढ़ी जा रही है
ताकतवर वज़ूद बनाया जिसे खुदा ने
रहम की रह-रह कर भीख जुटा रही है
जो खुद चिंगारी है
तिनकों से डरी जा रही है
बस एक बार खोलो खुद को
और झांको अंदर अपने
कि आखिर अबला-अबला चीखते-चीखते
तुम्हारी सबलता किसकदर मरी जा रही है
परखो खुदको...समझो खुदको
कमज़ोरी को निकाल बाहर करो
एक नया आग़ाज़ करो
समझा दो दुनिया को ठोंक बजा के
जुल्म-ओ-सितम को आँख दिखा के
कि
रेत की बनायी कोई तामीर नहीं हो
तुम किसी के बाप की जागीर नहीं हो !!!

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© परी ऍम. 'श्लोक'

Tuesday, January 20, 2015

अफ़सोस


बर्तनों पर उलचते हैं पानी
मेजों की आबरू का ख्याल करते हैं
शीशे की दीवारों पर एक निशान नहीं चमकता
फर्श पर जड़े पत्थर आईना से नज़र आतें हैं
कालिख में नहाये हुए कारों को साफ़ करते
पुर्जा-पुर्जा खोलते बांधते..
कहीं हाथ फैलाये बाज़ारों में
खुलेआम भिनभिनाते हुए
उम्र और कद से कई फर्लांग आगे
पेशानी पर बेबसी की लकीरें गाड़े
सपनों पर बेउम्मीदी की मैल चिपकाए
हसरतों का कटा फटा जामा पहने
आँखों में तल्ख जाम छुपाये हुए

ज़िन्दगी की लम्बी रेस में दौड़ते हुए
ये नन्हे घोड़े ...
जिनके दूध के दांत नहीं टूटे

अफ़सोस... मेरे मुल्क के बच्चे हैं !!
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© परी ऍम. 'श्लोक'

Thursday, January 15, 2015

अंधी सड़को पर ...


अंधी सड़को पर जिंदगी गुमनाम हुई
सुबह निकले तलाश में तो बस शाम हुई
अपनी आरज़ूओं को मारकर
कई हिस्सों में दफ़न किया
इस बेवफाई की साज़िश भी सरेआम हुई
इसकदर झुलसे सपने पलकों के
देखकर आँखें भी हैरान हुई
कहूँ क्या ? छिपाऊ क्या ? 'श्लोक'
अपनी कुछ ऐसे भी पहचान हुई
भूख से रूह तक शैतान हुई
साँसे कातिलाना कोई औज़ार हुई
हमने जाना जब कि
समेटी हुई कमाई बचपन की
जवानी की दहलीज़ पर आकर बेरोज़गार हुई !!
__________
© परी ऍम. 'श्लोक'

Wednesday, January 14, 2015

"शहर का मौसम"


धूप है
न झड़ी ओस की

दिन के जिस्म से उठता हुआ
धुँआ भी नहीं

बर्फ की बौछार है
न रूखापन फ़ज़ाओं में

निगाहों के आस-पास
हरा-भरा है मंज़र

काले दुपट्टे से
कुछ बूँदें टपक रही है

गुलाबी जमीन
और भी गुलाबी हो गयी है

हवाओ का तन भीगा-भीगा सा है
 
आज मेरे शहर का मौसम गीला सा है
 
________________
© परी ऍम. 'श्लोक'

Saturday, January 10, 2015

खेल रहे हो जब से ....

खेल रहे हो
जब से आँख-मिचौली
दिन भी दिन जैसा कहाँ?
रात सा हर पहर नज़र आता है
दुबका हुआ सिमटा हुआ
पूरा शहर नज़र आता है  
आदत तुम्हारी आज की नहीं
बड़ी पुरानी है ...
पेड़ो की छाँव में छिप-छिप कर  
बचके तुमसे निकलती हूँ जब
तो सरेआम छेड़ते हो मुझे
चले आते हो जलाने को मन 
भिगाने को तन
मगर जब
यादो की सर्द हवाओ में
तुम्हारी जरूरत परवान पे होती है
इंतज़ार में तुम्हारे 
ठिठुरने लगती है उम्मीद
कंपकपाने लगती है रूह
तब तुम नहीं आते
ज़रा सी गर्माहट देने मेरे वज़ूद को
गिरा लेते हो दरमियान
सफेद मोटा पर्दा कोई
मैं देखती रह जाती हूँ
सर उठाये आसमान
जहाँ दूर तक नहीं मिलते
तुम्हारे निशान...

सब कहते हैं की तुम आफताब हो
जो भी हो मगर बड़े ही बेवफा हो !! 

_______________________
© परी ऍम. 'श्लोक'

Sunday, January 4, 2015

हम अपनी हस्ती को बदल लेते हैं


मत चढ़ाओ नकाबों का बोझ चहरे पर
इत्र डालो जिस्म पे कि महके तू
और तेरी खुशबु से आलम सारा

तसल्लियों की गोली खाकर
बिस्तर को नींद की हसीना न दो
सोने का वक़्त नहीं जल्दी उठो
हमारी खुदगर्जी को खबर होने से पहले
आओ अंधेरो में उजाला ढूँढना है
तेरे अंदर तुझे उतरना है मेरे अंदर मुझे
झांकना है रूह के आईने में चेहरा अपना
बचाना है उस किरदार को
जो वक़्त का जहर पी रहा है
इससे पहले की वो नेस्तनाबूद हो जाए
चलो महफूज़ कर लेते हैं कुछ नेकियां

कुछ ही मोहलत है
बदलाव की ताबीज़ पहन लेते हैं
किसी और को नहीं
हम अपनी-अपनी हस्ती को बदल लेते हैं

अभी है वक्त .....संभल लेते हैं !!
___________________
© परी ऍम 'श्लोक'

Thursday, January 1, 2015

अजनबी राहें....


 


अजनबी राहों में चल दिए हैं
उम्मीदों का चराग़ लिए दिल में  
जो खोया उसके निशान मिटाते हुए
बस एक सोच है की आगे होना क्या है ?

ये पहला कदम है पहला पहर है
अभी साया साथ है मेरे
अभी तो जोश भी है नयी सुबह की...

चलना है दूर तक... अभी कई मोड़ बाकी है
अभी तो रूबरू होना है कई अनजानी हलचलों से
अभी पर्दा उठाना है आहिस्ता-आहिस्ता कल से

अजनबी देकर इशारा कहता है
यकीन मानो...
बहुत कुछ जान जाओगे...
बस इस सफर में साथ   चलकर तो देखो
एक बार मुझे   जीकर तो देखो !!
 
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© परी ऍम. 'श्लोक'