दिल नहीं मेरे
पास मोहोब्बत कहाँ
होगी
लगता है कोई
जिंदगी फिर से
तबाह होगी
मेरी सूरत पे
दमकते होंगे बेशक
के आफताब
तकदीर कि गलियो
में केवल आंधियां
होगी
मेरे पास दर्द
का घर है,
मगर एहसास कि
दीवारे नहीं
ऐसी भी क्या
इस शहर में
किसी कि दुनिया
होगी
रो पड़ोगे बेवजह सुनके
दास्तान मेरी
तुम्हारे
पास भी कहाँ
मेरे तकलीफो कि
दवा होगी
टूटे हुए ख्वाबो
कि चुरखणो को
बीन कर
कैसे किसी कि
आरज़ू 'श्लोक' फिर
जिन्दा
होगी
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'