Friday, February 21, 2014

"बस तुम्हे सोचती हूँ"

आज कल जब सोचती हु बस तुम्हे सोचती हूँ            ,,,
कुछ तेरी खूबियाँ हद से ज्यादा,,,कुछ खुद की हज़ारो कमी सोचती हूँ ,,,

तेरे इशारों पे रक्स करने लगा है मेरा ठहरा हुआ तसव्वुर,,,,
दिल हुआ है क्यूँ इतना,,, मतलबी सोचती हूँ ,,,

दरारी चूडियो की तरह जब धड़कने ज्यादा आवाज़ करती हैं,,,
मै बिखर जाने की नजदीकी सदी सोचती हूँ,,,

आज कल जब सोचती हु बस तुम्हे सोचती हूँ,,,

तुम्हारे प्यार से अपने घर में उजाला करके,,,
हालात-ए-हवाओं की मै बेरहमी सोचती हूँ,,,

रेत के सेहरा पे लिख के नाम तेरा,,
प्यास बुझा पाऊँगी कैसे सोचती हूँ,,

जस्बातो की जब भी नामुमकिन ज़स्तुजू का ख्याल आता हैं,,,
आँखों में आंसुओ का दरिया नहीं,,समंदर-ए-लहू सोचती हूँ,,,

आज कल जब सोचती हु बस तुम्हे सोचती हूँ,,,


ग़ज़लकार : परी ऍम श्लोक

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