मुझमे
हसरत जगी
लेकिन
जानता मुझे कोई नहीं
कैसे जानता ???
कि मुझे कोई जानता नहीं...
रचनाकार : परी ऍम श्लोक
खुद
को समझने कि
खुद
को पहचानने कि
मगर
कैसे???
ये
सोचना भी बेहद मुनासिफ
मैं
क्या हूँ , किसके बीच हूँ,
कहाँ
उलझी हूँ, कहाँ फसी हूँ
कभी
कभी सोचती हूँ 'मैं इक हस्ती हूँ'
कैसे जानता ???
कभी
कोशिश ही नहीं कि
खुद
को साबित करने कि
इस
भीड़ के धक्का-मुक्की से निकलने कि
और
बस इन्ही के पैरो तले कुचलती पिसती रही
लेकिन
कुचलने से बच गयी
तो
बस ये सोच कि 'मैं इक हस्ती हूँ'
मगर
इस कसक के साथ कि मुझे कोई जानता नहीं...
मैं
इक ऐसी नाव पर सवार हूँ
जिसका
सागर रिश्तो से बना है
बड़ी
उथल पुथल मची है इसमें
मैंने
नाव छोड़ दी लेकिन रिश्ता नहीं...
इक
जिज्ञासा के जंगल में उतरी हूँ
जिसके
कई दौर पार करने हैं
खबर
है बड़े-बड़े शेर होंगे
कई
सुन्दर हिरनियाँ....
लेकिन
मैंने ठाना है
खुद
को जानने कि धुन सवार है
खुश्क
हूँ इस बात से कि आखिर
अब तक
क्यूँ अनजान रही...
लोग
मेरे अरमानो के ऊपर चढ़ के
उस
पार जाते रहे ये सोच कि मैं कश्ती हूँ
अब
मुझे पता है मैं क्या हूँ ?
बस सबको यकीन दिलाना है
कि
"मैं इक हस्ती हूँ" !!
रचनाकार : परी ऍम श्लोक
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