Tuesday, February 25, 2014

!! वो मेरा था ही नहीं !!


किस बात पर मैं अपनी आँखे नम करूँ
वो मेरा था ही नहीं उसके जाने का क्या गम करूँ

 यूँ बेवजह उसके सितम को तवज्जु दे
अपने जख्मो के दर्द पर और कितने जुलम करूँ

कर दिया उसके नाम तमाम जिंदगी अपनी
और उसके खातिर तबाह मैं कितने जनम करूँ

यादो ठहर जाओ कोई आशियाना गर मिले तुम्हे
मुझे सोचने दो ज़रा मोहोब्बत कैसे कम करूँ

 हकीकत जो अब तक छिपाती आयी हूँ खुदसे 'श्लोक'
सोचती हूँ उसे जताने से अब शरम करूँ


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!