किस बात पर
मैं अपनी आँखे
नम करूँ
वो मेरा था
ही नहीं उसके
जाने का क्या
गम करूँ
अपने जख्मो के दर्द
पर और कितने
जुलम करूँ
कर दिया उसके
नाम तमाम जिंदगी
अपनी
और उसके खातिर
तबाह मैं कितने
जनम करूँ
यादो ठहर जाओ
कोई आशियाना गर
मिले तुम्हे
मुझे सोचने दो ज़रा
मोहोब्बत कैसे कम
करूँ
सोचती हूँ उसे
जताने से अब
न शरम करूँ
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
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