आज कि रात कि
ये ख़ामोशी
कुछ अलग ही है..
हवाओ कि सरगोशियाँ, ख्वाबो कि बेचैनियाँ
खुले जुल्फो में खुश्बुओ का उलझना मेरे
धड़कनो को सहलाना, नींदो का जागना
चाँद कि हलकी रोशनी से जलन
ये बेताबियाँ हैं कि रुकने का नाम नही ले रही
आज ये रात कुछ तो कह रही है
मगर क्या ?
तुम हो या फिर तुम्हारी यादो से
टूटने लगी है मेरी तन्हाई
तुम आये हो या
फिर ये वहम कि अनजानी परछाइयाँ
कोई साज़िश करने पर उतारू है
कहीं ऐसा तो नही कि
मुझे भी मोहोब्बत हो गयी है तुमसे
ये जानते हुए भी कि
ये पागलपन के सिवा कुछ भी नही
तुम हो ही नही आस-पास और शायद बहुत दूर तलक भी नहीं !!
हवाओ कि सरगोशियाँ, ख्वाबो कि बेचैनियाँ
खुले जुल्फो में खुश्बुओ का उलझना मेरे
धड़कनो को सहलाना, नींदो का जागना
चाँद कि हलकी रोशनी से जलन
ये बेताबियाँ हैं कि रुकने का नाम नही ले रही
आज ये रात कुछ तो कह रही है
मगर क्या ?
तुम हो या फिर तुम्हारी यादो से
टूटने लगी है मेरी तन्हाई
तुम आये हो या
फिर ये वहम कि अनजानी परछाइयाँ
कोई साज़िश करने पर उतारू है
कहीं ऐसा तो नही कि
मुझे भी मोहोब्बत हो गयी है तुमसे
ये जानते हुए भी कि
ये पागलपन के सिवा कुछ भी नही
तुम हो ही नही आस-पास और शायद बहुत दूर तलक भी नहीं !!
रचनाकार : परी ऍम श्लोक
19/12/2004
(Note : जावेद अख्तर जी से मुवाफ़ी चाहते हुए..............
मैंने ये पंक्तियाँ 19 दिसंबर 2004 को लिखी थी अगर गलती से कुछ शब्द मिले तो माफ़ करियेगा )
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