Saturday, February 22, 2014

आज कि रात कि ये ख़ामोशी (my fev one)

आज कि रात कि ये ख़ामोशी
कुछ अलग ही है..
हवाओ कि सरगोशियाँ, ख्वाबो कि बेचैनियाँ
खुले जुल्फो में खुश्बुओ का उलझना मेरे
धड़कनो को सहलाना, नींदो का जागना
चाँद कि हलकी रोशनी से जलन
ये बेताबियाँ हैं कि रुकने का नाम नही ले रही
आज ये रात कुछ तो कह रही है
मगर क्या ?
तुम हो या फिर तुम्हारी यादो से
टूटने लगी है मेरी तन्हाई
तुम आये हो या
फिर ये वहम कि अनजानी परछाइयाँ
कोई साज़िश करने पर उतारू है
कहीं ऐसा तो नही कि
मुझे भी मोहोब्बत हो गयी है तुमसे
ये जानते हुए भी कि
ये पागलपन के सिवा कुछ भी नही
तुम हो ही नही आस-पास और शायद बहुत दूर तलक भी नहीं !!
 
रचनाकार : परी ऍम श्लोक
19/12/2004
 
(Note : जावेद अख्तर जी से मुवाफ़ी चाहते हुए..............
 मैंने ये  पंक्तियाँ 19 दिसंबर 2004  को लिखी थी अगर गलती से कुछ शब्द मिले तो माफ़ करियेगा )

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!