Thursday, February 20, 2014

"कहूँ कि कितना खुश हूँ मै"


कहूँ कि कितना खुश हूँ  मै मेरी आदाओ से पढ़ लो
कि आज कल कुछ भी बयान करने को अल्फाज़ नहीं मिलते

उनको जता पाती मोहोब्बत मेरी चाहती है क्या-क्या
नजाने क्यूँ दिल के हालात से लबो के इज़हार नहीं मिलते

करती हूँ बाते बहकी-बहकी नजाने किस खुमार में रहती हूँ
की पहले  के ‘श्लोक’ से अब मेरे मिजाज़ नहीं मिलते,,,,

तोड़ती जा रही हूँ बंदिशे.. इस मतलबी समाज की,,,
जो मुझे रोक ले राह-ए-दरमियाँ वो दीवार नहीं मिलते…

मै लुटाने लगी हूँ उनपे रातो की नींदे आखिर कुछ तो है वजह
सच कहूँ तो इंसानी बस्ती में फ़रिश्ते-ए- किरदार नहीं मिलते


ग़ज़लकार  : परी ऍम श्लोक

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