तुम सो रहे हो
अहम् कि गहरी नींद
पूरे संतोष के साथ
आकांक्षाएँ धर के
तकिये के नीचे..
किन्तु
जब तुम्हारी नींद टूटेगी
तुम जागोगे
तो ये चिरैया उड़ जायेगी.
फिर तुम्हे कहीं न दिखेगी दोबारा
पर्वत, वृक्ष, या आकाश कहीं न ठहरेगी
रिसियाके जिससे तुमने
कई समय से बात भी नहीं कि
इक-इक करके घट रहा है जीवन
बढ़ रही हूँ मैं आगे कि ओर ....
ऐसा न हो सुबह भी
तुम्हे रात जैसी प्रतीक होने लगे
चहकती चिड़िया कि चहक
खामोशियो में बदलते ही!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
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