Wednesday, February 26, 2014

तुम्हे भुलाने कि....


तुम्हे भुलाने कि हिम्मत जुटा रही हूँ मैं
मरी हुई हसरतो को हिला-डुला रही हूँ मैं
तुम हो क्या जो मन से कहीं जाते ही नहीं
तुम साया हो जो पास भी आते ही नहीं

छोड़ दे तुम्हे और आगे बढ़े सोचते हैं
कदम बढ़ता है तो तुम्हारी ख्वाइश हमें रोकते हैं
इस बार तुम्हे आखिरी मौका देंगे
नहीं मानोगे तो फिर फैसला सुना देंगे  

फिर न कहना कि रुस्वा किया हमने तुमको
वरना तू बेवफा था तुझको हम ये जता देंगे
अब जो भी होगा इस कहानी का अंजाम होगा
फ़िक्र मत कर तू कहीं भी न बदनाम होगा

तू तो ख्वाब था हकीकत कभी हुआ तो नहीं
मैंने बस ख्वाब हारा है तुझे पाने का हौसला तो नहीं
सच तो ये है सफ़र बेशक तेरे एहसासो में गुजारा मैंने
मगर किसी शक्ल में मेरा तू कभी हुआ तो नहीं !!

ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Date : Mach 19, 2007

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