Wednesday, February 19, 2014

"आने से पहले"

हम सावन नहीं थे.....
मगर हरे भरे हो गए थे.......
बादल नहीं थे.........
मगर बरस पड़े थे........
चाँद नहीं थे ...........
लेकिन अज़ब नूर सा छाया था.....
जैसे पतझड़ के आँगन में
बरसो बाद बहार आया था
सूरज नहीं थे
मगर जल पड़े थे
ताल थे सूखे चट्टाये से 
मगर सागर बन गए थे
कांटे से फूल बन गए थे
नीम से शहद हो चले थे
      हाँ ! हाँ ! हाँ !
अगर सच कहीं कोई है
तो सिर्फ यही है...

तुम्हारे आने से पहले तक
कुछ और थे हम
लेकिन
तुम्हारे जाने के बाद
कुछ और बन गए थे !!! 
 
 
रचनाकार : परी ऍम श्लोक

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