Saturday, February 22, 2014

" ख्यालात "




तुम मेरी लव्ज़ हो मैं तुम्हे खो कैसे सकती हूँ
तुम सवेरे मिलोगे इस खबर के बाद मैं सो कैसे सकती हूँ
लोग कहते हैं पत्थर दिल हूँ मैं इन्हे कैसे बताऊ कि दीद में हो तुम
दर्द कितना भी टीस दे मगर मैं रो कैसे सकती हूँ

 
फिर क्या हुआ कि तुम मेरे रुबरु नहीं रहे
ऐसा नही कि तुम अब मेरी जिंदगी नहीं रहे
हो सकता है कि लकीरे न हो तेरे नाम कि हाथो में
ये मत सोचना कि तुम आज मेरी आरज़ू नही रहे

 
गीतो में ग़ज़ल में मैं तुम्हे गुनगुनाती रही
ये बात और है जहान वालो से तुम्हे छिपाती रही
मालूम है साँसों कि लड़ी टूट जायेगी और तुम न आओगे कभी
मगर फिर भी तेरे इंतज़ार में मैं उम्र बिताती रही
 
मेरे नसीब में शायद था जिन्दा होकर भी खो जाना
मैं अक्सर तलाशती हूँ मुझमे अपना वज़ूद रोजाना
मगर जाने क्या मंज़ूर है बेचैन दिल को मेरे यारो
बड़ा अज़ीब लगा आईने में खुद को देखूं और उसका मिल जाना
 
ऐसा नहीं कि तबियत मेरी जां नहीं बदली
रूह बदला, दिल बदला, कुछ दास्तान नहीं बदली
हम निकल आये तेरे शहर से आज बहुत दूर
घर बदला, वक्त बदला मगर तेरी जगह नहीं बदली

नादान है दिल इसको समझाना बेकार है
इश्क़ किया तो दर्द का दरिया तैयार है
दोनों तरफ वफाये हो तो किस्मत तुम्हारा 'श्लोक'
वरना रुस्वाइयों का मज़ा भी बेहद बेमिसाल है


मैं हालातो से लड़ती हूँ झगड़ती हूँ जीत जाती हूँ
मैं इंसान हूँ इस गुरूर से अक्सर सर उठाती हूँ

मैं जिन्दा हूँ इसका एहसास भी मरने नहीं देती
मैं इंसानियत कि अलख रूह तक में जलाती हूँ
 
 
जाने क्या सोच कर समंदर में उतर गए थे हम
न कश्ती का सहारा था न लहर पर जोर हमारा था
हमने आंधियो को रोकने के लिये ताकत लगा दी
मगर न वो शहर था मेरा न ही वो घर हमारा था


रचनाकार : परी ऍम "श्लोक"

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