Thursday, February 20, 2014

"अल्फ़ाज़"

1) मेरी कहानी कि पंक्तियाँ खुद से यूँ हैरान थी
कुछ शब्द आंसू से फीके हो गए कुछ लहू से लाल थी
कलम को तोड़ती रही दर्द कि आह ! लगातार
एहसास के पन्ने खुशियो से इस कदर बेज़ार थी
किरदार था कमज़ोर आग़ाज़ तो कर लिया लेकिन
अपनी कहानी के अंजाम से खुद ही शर्मसार थी


3) कर गया था बदहवासी में इक फैसला वो शक्स
आज हर फैसले से वो चोट खाये जा रहा है
वो फूल जो अँधेरे से थक के उजालो कि चाह कर बैठा था
उसको तो चाँद के ठंडा उजाला भी जलाये जा रहा है


4) चिरागो तले जब भी अँधेरा मिले तो
समझ लेना मुझ बिन अधूरे रहे तुम



5) मेरे नगमे तुम्हारी याद में कुछ यूँ सजाये हैं
 अतिशो के गाँव से जाकर जुगनुओ को लाये हैं
इंद्रधनुष के रंगो से लिखा हैं  तुम्हारा नाम
मोहोब्बत -ए-जस्बात से गीतो के घुन बनाये है


6) ए गम तेरे इरादे बहुत खूंखार है ना देख मुझसे न उलझ
वरना यूँ मसलूँगी कि तू ख़ाक में मिल जाएगा !


7) कोई तो नज़र उतारो मेरी जिंदगी की,,,
बेहद खुबसूरत है और यहाँ निगाहें फ़कीर है सबकि !!



8) ये जिंदगी का मसला खुद-बा-खुद सुलझा लूँगी ,,,





बदलियाँ हो गम की फिर भी मुस्कुरा लूँगी ,,,
मेरा वजूद तुझमे सिमटा हुआ है इस कदर,,
तू मिल गया मुझे,,,, तो मुकम्मल जहान पा लूँगी !!
 
 
9) इससे पहले तो बारिश ने हमें यूँ भिगोया था,,,
जरा देखो ना!
ये बूंदे कैसे गुस्ताखियों पे उतर आई हैं,,,,


10) हालात वैसे ही हैं मगर किरदार बदल गए हैं
आस्मां अपनी जगह से हिला भी नहीं


जाने कब ? ये दर-ओ-दीवार बदल गए हैं


11)  मेरी अपनी मेरी हमदर्द मेरी हमराज़ भी है,
ये शायरी, ग़ज़ल, कहानी, कविता मेरी आवाज़ भी हैं
मुझे नहीं चाहिए वफ़ा कायनात के बाशिंदो का
जिंदगी का अंजाम भी लव्ज़ हैं और यही आग़ाज़ भी हैं




12) कहीं बसेरा न मिले गर तो मलाल न रखना मेरे दोस्त 
जहाँ तेरा आशियाना होगा वहाँ इक शाम तुझे पहुंचा देगी !!



13) मैं सूरज से मिलाने निकली हूँ आँख
    मगर उम्र थोड़ी हैं और फ़ासला लम्बा !!


14) मुझपे क्या गुजारी क्या जानोगे मेरे मोहसिन
बस इतना जान लो मर रहे है हम जिंदगी के हाथो!!

15) मैं उस मगरूर से शिकवा भी क्या करती 'श्लोक'
हर इल्जाम मेरे सर था मोहोब्बत से बेवफाई तक

16) बचा न कुछ भी कहने को फिर ख़ामोशी के अलावा
उसने नज़र मिला के बोला कि तुम मेरी जिंदगी हो श्लोक

17) "सब कुछ अजनबी-अजनबी सा लग रहा है 'श्लोक' .....
यूँ तो तिलासा सबने दिया कि वो इस शहर में मेरे अपने है

18) बड़ा अजीब रहा तकदीर का सितम मुझपे 'श्लोक'
सही का नकाब ओढ़ा हुआ था हर नामाकूल फैसलो ने

19) वहीँ उसी सफ़र में जहाँ तुम मुझे मिलोगे
किसी मोड़ पे ठहर कर तेरा इंतज़ार करके देखते हैं
मोहोब्बत फूल गुलाब से हर कोई करता है
आज चलो हम भी कांटो से प्यार करके देखते हैं
20) हम सिर्फ टूटे ही नहीं टूट कर बिखरते चले गए
हम दर्द कि हर इम्तिहान से गुजरते चले गए
सोचा था तुम्हे बयां नही करेंगे हाल-ए-तड़प अपना
मगर आंसू आँखो कि दहलीज़ पार करते चले गए

शायरा : परी ऍम श्लोक

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!