Wednesday, February 12, 2014

"मायूस"

जिंदगी मायूस सी जिन्दा है
बेमन, बेरंग, बदहवास बनके
जिंदगी को जिंदगी कि ज़रूरत ही नहीं
लेकिन ज़रुरतो को जिंदगी चाहिए
किसी भी कीमत पे
क्यूंकि उसे पूरा जो होना है
मस्तिष्क अशांत है दिल बेचैन
वक़्त के साथ ये ठहरता नही
बल्कि तेजी से बढ़ता ही जा रहा है
बड़ा भारी बन पड़ा है रण-क्षेत्र
हर आदमी के हाथ कटार है
और हम प्यार लेकर उतरे है 
परिणाम भलीभांति ज्ञात है मुझे
परन्तु संवेदनाएं मासूम है अनपढ़ है
इनको समझा पाना जिंदगी कि
आखिरी रात तक भी असम्भव है
अज़ीब जंग है ये जीवन का
जिसमे हारी तो हार है
और जीत गयी तो भी हार है
मैं चाहती कुछ नहीं न जीत न हार
बस शांति कि एकमात्र आशा है
किन्तु शांति जीवन कि रण से
कोई वास्ता ही नही रखती
अब मैं भी देखने कि इच्छुक हूँ
कि आखिरकार क्या अंत है इस सफ़र का?
बेचैनियाँ, बेक़रारियां, पागलपन
या
फिर है कहीं कोई कोना जहाँ हैं
मानसिक शांति के आसार ?!!

रचनाकार : परी ऍम श्लोक

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