Wednesday, February 26, 2014

ग़ज़लकार हूँ मैं ...... ((समर्पित' परी ऍम श्लोक को))

मैं अपना दर्द किसी से साँझा नहीं करती
हाल सुनाऊँगी तुमको भी ये वादा नहीं करती

लिखने को पास मेरे ख्यालात के अम्बार है
मैं हकीकतो कि उंगलियो को थामा नहीं करती

ये ज़रूरी नहीं कि जियु मैं भी तमाम आलम
ग़ज़लकार हूँ मैं हालातो का सहारा नहीं करती

लोग कहते हैं लगता है जीत हासिल नहीं हुई 'श्लोक' को
इन्हे कहो मैं जीत कि रचयिता हूँ कभी हारा नहीं करती

मैं जो हूँ जैसी हूँ उसपे नकाब न चढ़ाऊँगी
अंजाम से डर कर अपनी हस्ती से मैं किनारा नहीं करती

मेरी जिंदगी कलम है साँसे हैं अल्फाज़, रंग-रूप रोशनाई है
इनके बिना इक लम्हा भी मैं गुजारा नहीं करती

तुम न होती 'परी ऍम श्लोक' मुझमे तो बुत होती मैं बेजान
तेरे बिन वज़ूद को अपने ये अहमियत मैं गवारा नहीं करती

ये शहर है भीड़ है जुबान दर जुबान बदलेगी
मगर मैं वक़्त के साथ बदल जाने का इशारा नहीं करती


 परी ऍम 'श्लोक'

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!