Wednesday, February 19, 2014

" तुम कहो या चुप रहो "

तुम्हारी आवाज़
मेरे कानो से गुजरती हुई
मन के कोने-कोने को
गुदगुदा देती है
तुम्हारी हसी
बुझे हुए आशाओ के दीप
तूफ़ान में भी जला देती है
तुम्हारे ख्वाब
श्याह रातो में
नींदो को वजह देते हैं
तुम्हारी ज़ुस्तज़ू
किरच में भी फूल खिला देते हैं
तुम तलब हो, एहसास हो,
धड़कन हो, जज्बात हो
तुम्हारी याद वक़्त बेवक़्त
जब भी आती है
घड़ी कि सुई घुमा देती हैं

तुम कहो या चुप रहो
मगर
तुम्हारी ख़ामोशी है जो
मुझे सब कुछ नज़र से बता देती है !!!


रचनाकार : परी ऍम श्लोक

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