जिंदगी कि
जुबान पे इक पड़ाव पर समझौता आया...
और मैं चौक कर
कसक-मसक करने लगी
रास्ते सभी बंद थे
वो मोड़ ही शेष
मुश्किल दौर था बेहद
सबने कहा दुर्भाग्यशाली है
मुझे भी लगा सत्य ही है
सबके पास कई रास्ते थे
लेकिन काबिलियत नहीं
मेरे पास काबिलियत थी
मगर मनचाहा रास्ता नहीं
रुकना नहीं था मुझे
क्यूंकि कायर नहीं हूँ मैं
लेकिन चलने का कोई अर्थ भी नहीं
जीते-जीते जिंदगी को
समझौते करते हुए इक उम्र हो गयी
ढोते-ढोते कमर झुक गयी
झुरियों ने अपनी जगह बना ली
गुलाबी चहरे पर मेरे.
पूरे सफ़र में
ख्वाब हकीकत से टकरा के
टूटते बिखरते रहे
अपनों कि मनमानी के अलाव में
झोकते रहे हर अरमान
ज़बरन कुछ भी करने का साहस
आज भी लुटा-पुता कहीं पड़ा है
समझौते ने आज भी
मेरा आँचल नहीं छोड़ा
शायद ! इसका साथ जीवन कि
चरम और अंतिम सीमा तक है !!
रचनाकार : परी ऍम श्लोक
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