अक्सर तेरी यादो में उलझ के सोचती हूँ मैं
जिंदगी औऱ कितनी हसीन हो सकती थी तुम्हारे होने से
सुबह-ओ-शाम कितनी संगीन हो सकती थी तुम्हारे होने से
अगर पैदा न होते दरमियान अपने ये तवील से फासले
मत पूछ रोशनाई कितनी रोमानी हो सकती थी तुम्हारे होने से
मौसम ये बहारे, ये बेचैन करती बारिश, ये झूलते सावन
औऱ कितनी महजबीन हो सकती थी तुम्हारे होने से
ये सफ़र जो तनहा अब मुझसे काटे काटा नहीं जाता
मंज़िल कितनी बेहतरीन हो सकती थी तुम्हारे होने से
खालीपन जो भर गया है तुझमें मुझमें औऱ कायनात में
पूरी होने के खातिर बेसबर हो सकती थी तुम्हारे होने से
बरसात जो अब केवल रेत बहा कर ले जाती हैं साथ अपने
मुझे जब्त तक भिगो सकती थी तुम्हारे होने से
जिस जगह पायी है मैंने अक्सर वीरानिया औऱ सन्नाटे
वो जगह महफ़िल भी हो सकती थी तुम्हारे होने से
तुम्हारी बाहों के सहारे जो मिले होते हमें 'श्लोक'
ज़मीन ये जन्नत भी हो सकती थी तुम्हारे होने से ....
मगर खुदा को शायद मज़ूर कुछ औऱ था
तेरा इल्तिफात कहीं ठहरा था औऱ मेरा नसीब कोई ओर था
अदा में मेरे भी नहीं थी फुसूंकारी हालात पे न कोई ज़ोर था
कहाँ से लाती चैन औऱ करार तलाश कर अपना
दिल भी झुका था तेरी तरफ हुनर-ए-दीदावर भी तेरी ओर था
अब जिंदगी भी वफ़ा करती नहीं मौत का भी कब कोई ठौर था
अक्सर तेरी यादो में उलझ के सोचती हूँ मैं
कि शायद खुदा को मंज़ूर ही कुछ ओर था !!!
रचनाकार : परी ऍम "श्लोक"
==फूस का महल==
ReplyDeleteफूस को महफिल अब गिनाते ना चल।
वह झोपड़ी में आग लगाते चले गये॥
दिखाते रहे सदा आलीशान मकान जो।
हवा वही ऐसी कि झोपड़ी उजड़ गये॥
पूछते फिरते जिसे अपना समझ उन्हें।
समय से वह महफिल में चले गये॥
अंधड़ और आँधियाें में मूल उखड़ गये।
जन्नते मशरूर जो हैरत में आ गये॥
शव्दार्थ;-जन्नत-स्वर्ग। मसरूर-लिप्त। महफि़ल-नज्ज़म,मजलिस,सभा,जलसा,नाचना गाना होने का स्थान।
मन को छूती भावुक रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर --
आग्रह है --मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
आजादी ------ ???
बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeletewah bahut khoob
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