उठती हैं माँ
सुबह सवेरे जल्दी से
करने लगती है
नाश्ते कि तैयारी
बच्चो को विधयालय भेजना है
ये नही भूलती है वो कभी
नहला धुला के कर देती है
बच्चो को तैयार...
दे देती है पोष्टिक नाश्ता
लदा देती है बस्ता
अंतराल में खाने के भोजन के साथ
और भेज देती है
विश्वास से विद्यालय को
परन्तु वो बच्चे अक्सर नज़र आते हैं मुझे
पार्क में, सिनेमा हाल में, होटल में
बस कहीं न कहीं
घूमते हुए बस्ता पीठ पर लादे
भूले हुए माँ का त्याग
पिता कि मेहनत मज़दूरी को
अपना भविष्य रख के ताक पर
चल देते हैं धोखा देकर
कि वो बहुत अच्छे और आदर्श बच्चे हैं
करेंगे एकदिन माँ-बाप का सपना पूर्ण
किन्तु कैसे ?
ये एक गम्भीर प्रश्न है
पार्क का सौन्दर्य बनाएगा सुंदर भविष्य?
या सिनेमा हाल कि
फ़िल्म बनाएगी उन्हें अभिनेता?
ये सोचने का बूझ कहाँ है उनमें?
उनके भविष्य कि धच्चियां उड़ा के
ख़ुशी मनाते हैं वो बच्चे
और सोता है विद्यालय
अपने फ़र्ज़ से मुँह फेर के
अन्धविश्वास के नशीली शराब में
डूबे रहते हैं माता-पिता
फसे रहते हैं झूठे सपने के भंवर में
कि उनका बच्चा एक दिन करेगा उनका नाम रोशन!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
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