Tuesday, February 25, 2014

तुम थे तुम्हारी याद थी



कुछ नहीं था वहाँ
सन्नाटे कि दीवारे थी
छत थी बेक़रारियो कि बेताबियों कि
ज़मीन कि खाकी परत थी
आसमान का नीला आँचल
झूल रही थी हवाओ के बीच कहीं
तुम थे तुम्हारी याद थी
तेज़ दौड़ती हुई मेरी धड़कने थी
मरे काबू से इकदम बाहर
सिलवटे थी अँधेरी रात कि
मैं एकदम तनहा
हालातो के कैद में फसी हुई
तन्हाईओं कि जुबान पर नाम मेरा था
और मेरी जुबान पर तुम्हारा
तकरार थी अज़ब सी
और
टूटती बिखरती हुई मैं
तारो कि टिमटिमाहट
कभी जलाता कभी बुझा देता
हैरान थी उलझने… बेबस थी संवेदनाये
लेकिन इन तमाम कशमकशमें
तुम्हे अपने करीब मौजूद पाया मैंने
कई मीलो कि अनगिनत दूरियों के बावज़ूद भी !!


रचनाकार : परी ऍम श्लोक
रचनाकाल : साल 2004 , 28 सितम्बर

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