Thursday, February 27, 2014

"बेताबियाँ"


मेरे पास संगीन लव्ज़ है
मगर क्या तुम्हारे पास हैरानियाँ है?
मैं बयां कर सकती हूँ बेशक 
अपनी मंशा तुम्हे.......
फिर जाने क्यूँ रह रह के
ये ख्याल आता है कि
क्या तुम्हारे पास बेताबियाँ है?
चाहती तो हूँ कि रोक लूँ तुम्हे कुछ पल
फिर कोशिश करू जताने कि बेचैनियाँ अपनी
मगर ये सवाल...
क्या तुम्हारे पास वक़्त है?
फिर सोचती हूँ कि चुप ही रहूँ ...
तुम्हे बेकरार रहने दूँ
और कहूं पढ़ो अब
जो मैंने अपनी आँखो में तुम्हारे लिए
बेहिसाब हर्फ़ जोड़-जोड़ के अल्फाज़ रचे हैं
वो क्या बोलने कि आरज़ू पाले हैं?
और तुम्हे एहसास करवा दूँ
कि खामोशियो का असर
आवाज़ कि गूंज से बेहद ज्यादा होती है 
मगर ये दुश्वारियां हैं कि मिटती नहीं
हालात और भी संजीदा होते जा रहे हैं
मेरी धड़कनो के...
तुम्हे देखकर अज़ब तमाशा मचा देते हैं
सोचती हूँ थमा दूँ तुम्हारे दिल के हाथ
ये तमाम हलचल
ताकि तुम भांप सको ....
अगर मोहोब्बत बयां न किया जाए
तो इसका हश्र कितना गमगीन होता है
लेकिन फिर इस बात का भी तो
सबूत नही मेरे पास कि
तुम्हारे पास मस्लहत भी है
मेरी बेकरियों को अजांम देने कि
और ये भी तो नही जानती कि
आखिर ये गुनगुना, मीठा,
रगो को सरसराता हुआ एहसास इश्क़ है
या
फिर किसी वहम के गिरफ्त में आ घिरी हूँ मैं !!
 
 
रचनाकार : परी ऍम श्लोक

2 comments:

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