Friday, February 7, 2014

"बरसात में शहर"


होती है बरसात
इस शहर में भी
कड़कती बिजलियाँ,
वैसे ही घनघोर काले बादल
जब मैं खिड़कियों से
झाँक कर देखती हूँ
तो माले मिलते हैं भीगते हुए
समंदर मिलता है डूबते हुए
लोग पैदल चलते मिलते हैं
छाता ताने, बरसाती पहने
पानी कि बौछार धो देता है
बड़ी-बड़ी कार के शीशे ओर छत
आती है ठंडाई सी हवा
तट से टकरा कर
मेरी बालगनि तक
पर फिर भी नहीं यहाँ
मेरे गांव कि तरह
चिड़िया का चहकना,
पेड़-पौधो का हरियाना
पहाड़ो से झर कर आता हुआ
जमीन कि सतह तक बरसाती पानी
भीगता हुआ खेतो को जोतता
या फिर रोपता हुआ
धान कि फसल को दलदले ज़मीन में
मुस्कुराता हुआ किसान,
कूदते हुए मेंढक
बड़ा अधूरा सा रहता हैं
बरसात भी इस शहर का !!



रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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