सुबह कि भोर में
रात के इस अंत के बादउम्र के इक पड़ाव पर
ग़ज़रिली रोशनी
और
बयार कि चुप्पी के बीच
इक नायाब मुकाम पर
कोहरे के मुब्हम परदे के पीछे
सुनहरे लाल मलबूस में
इक लम्बे इतंज़ार के बाद
कंक्रीटी राहो पर पलके बिछाये
कई शोक मन में दाबे
कुछ हुनर का दामन थामे
कई हसरत और उम्मीद बांधे
अपनों से बिछुड़ने का हौंसला लिए
जिंदगी की करवटों से हैरां
खुद को तुमसे साँझा करने
तुम्हे खुद में तुमसे ज्यादा करने
वो दुल्हन सी लड़की
यकीनन तुम्हे भी मिलेगी दोस्त !!!(अपने इक दोस्त के लिए )
No comments:
Post a Comment
मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!