Sunday, February 9, 2014

कहाँ है सत्य ???

सत्य कहने को सत्य है
किन्तु क्या प्रस्तुत किया हुआ
स्पष्टीकरण किसी भी
व्यक्ति या विशेष का
पूर्णतया सत्य होता है??
या फिर हर सत्य का प्रस्तुतीकरण
अपने हित को सर्वपरि
रख के किया जाता है?
बस यही जानने कि कोशिश
मैंने भी कि
फिर क्या ?
बुद-बुद चूने लगी
कश्मकश कि सिली टूटी छत से
सूखती चली गयी हर बूँद इच्छा कि
सत्य को जानने कि
सब धुंधलाता चला गया
और उलझाता चला गया
क्यूंकि वास्तविकता तो यही है
किसी के भीतर झांक के देख पाना
मुनासिफ नहीं था मेरे लिए
महसूस जो भी किया
वो सत्य से ज्यादा खूबसूरत होता
जो जान पायी उसमे थोड़ी खट्टास थी
और जो सत्य होगा
वो मेरे लिए तहक़ीक़ात के बाद भी
पूरी तरह से पता लगा पाना मुश्किल
मैं अनुमान लगाना चाहती थी
लेकिन ये मुझे कहीं न कहीं
असत्य कि ओर ढकेल देता
ऐसे में किसी को दोषी कहने
या निर्दोष कहना
दोनों ही निरर्थक लगा...
इस तलाश में मुझे मिला
बस उतना कि सत्य
जो अपने अपने बचाव के लिए
हित में निहित करके सामने रखा गया
अपूर्ण सा सत्य
क्या हुआ ?
कैसे हुआ ?
क्यूँ हुआ ?
ये जानना ज़रूरी अब नहीं लगता
बशर्ते अब सिर्फ इतनी ही जिज्ञासा बची है
क्या अब जो हो रहा है
वो सत्य है ?
या
सुंदर सा कोई झूठ ?
जो पलक झपकते ही कोई सपना होने वाला है !!!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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