Friday, February 7, 2014

" कहाँ ढूँढू "

कुछ खोया सा लग रहा है..
कहाँ ढूँढू ?
और
क्या?
यूँ ही बेचैनियाँ
कुताहल मचा रही होंगी!
लेकिन बेवजह
क्या कभी कुछ होता है?

ओह ! 

तुम्हे नज़र भर क्या देखा?
सब कुछ बदल गया है तबसे..

जिंदगी का मिज़ाज़
खट्टा-मीठा-नमकीन मिलाकर
कुछ नया से स्वाद में
अचानक ही परवर्तित हो गया !

चुरा ले गए तुम
कुछ तो ?
और
मिला गए हो
कोई उन्माद असर ....

बताओ ! बताओ ! बताओ !

तुम ही ये गूढ़ा रहस्य....

आखिर किस वज़ह से हम
चाहकर भी निकल नही पा रहे हैं
बेकाररियो के प्रगाढ़ भवसागर से ?


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
 

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