Friday, February 7, 2014

!!हम उन्ही पे अपनी जिंदगी लुटाते रहे!!


हम उन्ही पे अपनी जिंदगी लुटाते रहे
जो तिनके सा हमें फूंक के उड़ाते रहे

कभी नन्हे आरज़ू को कांधो पर बिठा लिया
कभी चींटी सी गुजारिश भी मसल जाते रहे

दिल में रख के भी हमें नवाज़ा रुस्वाइयों से
जो तमाम दुनिया मेरी आँचल को बताते रहे

मन किया था हद तोड़ कर रुबरु हो जाएँ
मगर फरेबो के साये जाग कर मुझे डराते रहे

शौकीन था ता-उम्र शौक से जी-भर खेला
हम नसीब के चालबाज़ी से शिकस्त खाते रहे

बर्बादियों कि खबर मेरे दुश्मनो को क्या लगी
भटके हुए मुसाफिर आकर रास्ता बताते रहे

कह तो दिया था आह दाब के कि बड़ी मिठास है
आंसू के नमकीनी पानी मगर हकीकत जताते रहे

बाज़ है किलकारियो से जिनके यहाँ का मौसम भी 
वो फ़कीर सर पर चढ़ कर खिल्लियां उड़ाते रहे

ख़ुदा बनने का जूनून 'श्लोक' के ईमान में रवां था
इंसान बनता गया हम जितना सच सुनाते रहे


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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