तुम यहाँ भी
नहीं और वहाँ
भी नहीं
फिर सोचती हूँ कि
क्यूँ अधूरी हूँ
मैं
मुझे तो अच्छी
नहीं लगती ये
मायूसियाँ
मगर नज़ाने क्यूँ जिंदगी
को ज़रूरी हूँ
मैं
चिरागो तले आखिर
ये अँधेरा क्यूँ
है
गुमान तो ये
भी है मुझे
कि रोशनी हूँ
मैं
मुझसे बोलने कि जिद्द
न किया करो
'श्लोक'
कोई यूँ ही
समझ लेगा कि
ख़ामोशी हूँ मैं
राह हूँ ना
कि किसी के
सपनो कि मज़िल
हूँ मैं
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
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