Monday, December 2, 2013

तुम्हारे बिना


 
तुम्हारे बिना..
सबकुछ महत्वहीन है, हर शब्द अर्थहीन,
हर आवाज़ व्यंग करती हुई प्रतीत होती है,
चुप्पी केवल आलोचना करती है,
हवा का हर झोका धकेल देता है मुझे,
बरसात का हर बूँद गला रहा है,
पंख जैसे नोंच दिए गए हों ऐसा आभास हो रहा है,,

 तुम्हारे बिना..
जीवन दिशाहीन हो गया है, मार्ग खो गए हैं,,
मैं चल रही हुँ पर स्थिर हुँ,ज़मीन ने जकड़ लिया हो जैसे मुझे,
किसी प्रशंशा या सहारना के लिए अब कुछ नहीं करती,
पन्नो को गोदती हूँ, जब तुम्हारी असीम याद आती है,
और मैं भावुक हो उठती हूँ,
इच्छाये लुप्त हो गयी है मुझमे से,,
कुछ पाने-खोने कि सीमा से बाहर गयी हूँ,
यदि अब सोने का भण्डार भी दिया जाए तो व्यर्थ,

 तुम्हारे बिना...
कई रिश्तो ने मुँह फेर लिया है मुझसे,
सपनो कि चादर फट चुकी है धागे बाहर चुके हैं,
दिन-रात ने चेहरा दिखाना बंद कर दिया है,
बाहर केवल कुहिरा है,,जिसमे कुछ दिखायी नहीं देता,,
पतझड़ धीरे-धीरे करके उम्र के पत्ते झाड़ रहा है,
अब सावन कुछ हरा नहीं करता,,सब कुछ सूखा पड़ा है, 

तुम्हारे बिना...
अपूर्णता गहरा गयी है
,
अब किसी चीज़ से भय नहीं लगता
,,
सब कुछ का अंत हो गया है
,
देह हल्का गया है,,

अब प्रतीक्षा है तो मात्र मृत्यु कि!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
 

2 comments:

  1. तुम्हारे बिना...
    अपूर्णता गहरा गयी है, ...ahsaason se bharee rachna

    ReplyDelete
  2. पतझड़ धीरे-धीरे करके उम्र के पत्ते झाड़ रहा है,
    अब सावन कुछ हरा नहीं करता,,सब कुछ सूखा पड़ा है,
    अच्छी रचना

    ReplyDelete

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!