Wednesday, March 25, 2015

मेरा शायर


हाँ ! माना की तुम्हारा चेहरा
उस शायर से मिलता है
जिसने मुझे
मोहब्बत में उम्र-क़ैद दी है
मगर तुम्हारी आँखों में
वफ़ा के वो रंग नहीं
होंटो पे हज़ारों नाम है एक मेरे सिवा
उंगलियों में मुझे छूने की तड़प नहीं
बाहों में मुझे भरने की ख्वाइश भी नहीं
ज़ेहन में कई ख़्याल है हम नहीं
शब न तो तनहा है तुम्हारा
न है तुम्हारी दुनिया वीरानी है मुझ बिन


मैं तुम्हें नहीं जानती
तुम बहुत अज़नबी से हो


देखो !
मैंने बेहद मुश्किल उठाई है
उसके दर तक आने को
हिज्र कैसे गुज़ारा है ये बात न पूछो


बताओ ना ! मुझे
मेरे शायर को तुमने कहाँ छिपा रखा है?

सर्वाधिकार सुरक्षित : परी ऍम. 'श्लोक'

Monday, March 23, 2015

कहाँ हूँ मैं ?


कुछ ब्लॉग पढ़ने वाले का पाठक मित्रों का सन्देश मिला। उन्होंने कई दिन से ब्लॉग पर मुझे न पाकर पूछ ही लिया परी जी आपने लिखना बंद कर दिया है क्या ? मन गदगद हो गया की मेरे पाठक मेरी रचनाओं की प्रतीक्षा करते हैं। माफ़ी चाहती हूँ मित्रों अबके ऐसा नहीं होगा फेसबुक पर पोस्ट करते-करते यहाँ के पाठको को निराश करने का खेद है मुझे।

मेरी कलम नहीं रुकेगी जब तक है जान जीने की वजह ही कैसे रोक सकती हूँ मैं। आगे से आपको निराश नहीं करुँगी समय समय पर पोस्ट करती रहूंगी। एक रचनाकार के लिए उसके पाठक उसके भगवान होते हैं वो नहीं तो हम नहीं। आप सबके सन्देश का शुक्रिया। आप स्वस्थ रहे खुश रहे और मेरी रचना पढ़ते रहे।

आप सबके समक्ष मेरी नज़्म प्रस्तुत है ......

तुम्हारे अना से टकरा कर टुकड़ा-टुकड़ा हूँ मैं
मानिंद की डायरी का पुराना पन्ना कोई फटा हूँ मैं
नज़्म हूँ कोई भूली-बिसरी जो तुझे याद नहीं
तेरी महफ़िलों का भी न कोई नाम-ओ-निशां हूँ मैं
हर सम्त मैं-मैं का सुनती हूँ कि धुँआ उठता है
हम के रास्तों में जाने कहाँ गुमशुदा हूँ मैं

बताओ! गुलाबी दुप्पटे के झांकती हुई
वो औरत अगर कोई और है
रातों में सेलफोन का दावेदार कोई है
तेरी लबों पे तलाश की प्यास अब भी बाकी है
ख्वाबों में भी तेरे महज़ मुकाम आया करते हैं
तुम्हारे महकती रोशन लव्ज़ों से अलावा फिर
अंधी-अपाहिज बुझी कसमें-वादों अलावा फिर
तुझमें दिखती नहीं ....न ही मेरे पास हूँ मैं
अगर कहीं नहीं हूँ तो फिर आखिर कहाँ हूँ मैं....!!


सर्वाधिकार सुरक्षित : परी ऍम. 'श्लोक'