हाँ ! माना की तुम्हारा चेहरा
उस शायर से मिलता है
जिसने मुझे
मोहब्बत में उम्र-क़ैद दी है
मगर तुम्हारी आँखों में
वफ़ा के वो रंग नहीं
होंटो पे हज़ारों नाम है एक मेरे सिवा
उंगलियों में मुझे छूने की तड़प नहीं
बाहों में मुझे भरने की ख्वाइश भी नहीं
ज़ेहन में कई ख़्याल है हम नहीं
शब न तो तनहा है तुम्हारा
न है तुम्हारी दुनिया वीरानी है मुझ बिन
मैं तुम्हें नहीं जानती
तुम बहुत अज़नबी से हो
देखो !
मैंने बेहद मुश्किल उठाई है
उसके दर तक आने को
हिज्र कैसे गुज़ारा है ये बात न पूछो
बताओ ना ! मुझे
मेरे शायर को तुमने कहाँ छिपा रखा है?
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