कल पापा शाम को जब घर आये तो उन्होंने बताया की उनकी फैक्ट्री में एक नौ साल का बच्चा नौकरी माँगने आया था ... जैसा की कानून के मुताबिक नाबालिक बच्चो से काम करवाना अपराध है तो पापा ने उसे नौकरी पर रखने से इंकार कर दिया और बोला बेटा आप अभी बच्चे हो हम आपको नौकरी पर नहीं रख सकते आपकी उम्र तो खेलने कूदने की है ...कैसे जान सकते थे मेरे पापा भी उस बच्चे की पीड़ा जब तक वो कह न देता कुछ .... पापा ने भी सलाह दे दी क्यूंकि सलाह देने में कोई पैसा नही लगता ....लेकिन बच्चा तो अड़ा था एक ही बात बोल रहा था ' नहीं मुझे कुछ काम दे दीजिये बेशक आप झाड़ू लगवाएं मैं वो भी करूँगा' ....कोई भी काम मिले सब कर लूंगा पर मुझे नौकरी दे दीजिये.... पापा ने बताया की उन्होंने उसे बहुत समझाया पर लड़का नहीं माना फिर पापा ने थोड़ा सकती दिखाते हुए उसे डांटा और गार्ड को कहकर उसे बाहर करवा दिया... पर गार्ड ने पापा को वापिस आकर बताया की बच्चा बहुत रो रहा था बोल रहा था मेरे पैर पकड़ के मुझे काम दे दो बाउ जी... मुझे बहुत भूख लगी है तो मैंने उसे खाने के लिए तीस रुपये दे दिए.. पापा ने जेब में हाथ डाला और भावुक मन से उसे तीस रुपये वापिस दे दिए जो उस गार्ड ने लड़के को दिए थे ! मैंने जब यह घटना सुनी तो मुझे यकीनन बहुत तकलीफ हुई ... उस वक़्त लिखी मैंने यह रचना भूख जो उस बच्चे को थी .....
भूख सबको लगती है
फिर चाहे वो जानवर हो या इंसान
अमीर हो या फिर गरीब
छोटा बच्चा हो या बड़ा
पर इस भूख से उठी लपटों को
कुछ थपथपा कर तसल्ली देते हैं
और सोचते हैं
कैसे इस भूख को मिटाने की
व्यवस्था की जाए
बेशक चलाना पड़े रिक्शा
माँजना पड़े बर्तन ,,धोना पड़े कपडा
साफ़ करना पड़े शौचालय
कुछ लोग उसे मिटा लेते हैं
मात्र दाल-रोटी खाकर ....
कुछ उस भूख के आगे
छप्पन भोग परोस देते हैं
और भूख को संतुष्ट कर देते हैं
कुछ आधी रोटी सूंघ कर सोचते हैं
इसे थोड़ा बाद में खाऊँगा
और
कुछ को तो रोटी देखे हुए
बीत जातें हैं दिन और
एकबार फिर वो निराश हो
खाली पेट ही नींद को
गले लगाकर सो जातें हैं
हालांकि नींद नहीं आती
क्यूंकि
यह भी उसी के यहाँ जाती है
जिसके पास सकून हो
और जहाँ आंत धधक रही हो
जिंदगी धुंआ छोड़ रही हो
आशाओ ने दर्शन दुर्लभ कर दिए हो
ज़मीन पर कांटो की शैय्या बिछी हो
ऊपर से व्यवस्थाओ के
मच्छर डंक मार रहे हो
उनके लिए नींद का मतलब सिर्फ
आँखों को बंद कर लेना होता है
क्या कोई समझता है ऐसी कोई भाषा
जो कहे भूखे रहो
मगर नियम का पालन करो
कानून हाथ खड़े कर कहता है
सुविधाएं तुम तक पहुँची या नहीं मालूम नहीं
मुज़रिमो तक कानून का हाथ पहुँचा या नही
पर मज़लूमो कि गर्दन तक हम जल्दी पहुँच जाते है
हा हा हा .....
जब उलंघन कर रहा हो
भूख सीमाओ का
फिर ऐसे में किस नियम कि बात करते हो
भूखे पेट नहीं समझ आता कानून
और फिर माँग ही क्या है रोटी न
वो भी ज्यादा नहीं बस दो वक़्त कि
उर्फ़
कोई कम उम्र का गरीब बच्चा
सूखी आंत लेकर नौकरी खंगालता है
तो मात्र सलाह की जड़ी बूटियों दे दी जाती है
सात्वना उसकी झोली में डाल दिया जाता है
जैसे कोई आशीर्वाद दिया जा रहा हो
मुर्दे को लम्बी आयु का
फिर खाली का खाली रह जाता है पेट
आलम ये है कि अब भीख भी माँगो
तो लात मिलती है
फिर पास बचता है चारा
या तो छीन लूँ या चुरा लूँ
पर कैसे भी
अब बर्दाश्त से बाहर है भूख मिटा लूँ
या
फिर तड़प तड़प के
किसी फूटपाथ पर दम तोड़ दूँ
साबित कर दो मुझे
लावारिस मेरी भूख की तरह ही
लावारिस है मेरी लाश भी !!!
________
©परी ऍम 'श्लोक'
सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteभूख इंसान से सब कुछ करवा देती है ... संवेदनशील पोस्ट ...
ReplyDeleteThis is very painful. In Chandigarh region, I believe there are several shelter available for such child's. I will check on this will update you . Let us see if any thing permanent can be done for this may several child like this.
ReplyDeleteKabhio kabhi mujhe lagta hai kee desh me apraadh ka mool karan bhi yahi hai. ek pe pass akoot dhan sampada hai doosraea ke pass khane ko roti nahi. Agyanta ka bhi yogdaan hai isme. Nirdhan aur anpadh logo ke bahut saare bachhe bhi hote hai sab ki dekh bhaal sambhav bhi nahi.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकोई कम उम्र का गरीब बच्चा
ReplyDeleteसूखी आंत लेकर नौकरी खंगालता है
तो मात्र सलाह की जड़ी बूटियों दे दी जाती है
सात्वना उसकी झोली में डाल दिया जाता है
जैसे कोई आशीर्वाद दिया जा रहा हो
मुर्दे को लम्बी आयु का
फिर खाली का खाली रह जाता है पेट
....बहुत मार्मिक...आँखें नम कर गयी....
परी जी आपके आमंत्रण का हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ, आपके ब्लग पर आ कर बहुत खुशी हुयी, और पढ कर यह अहसास हुआ कि, ब्लाग परिवार में आप जैसे सहदयी कवियत्री से मेरी मुलाकात एक सिखद संयोग हुआ।
ReplyDeleteया
ReplyDeleteफिर तड़प तड़प के
किसी फूटपाथ पर दम तोड़ दूँ
साबित कर दो मुझे
लावारिस मेरी भूख की तरह ही
लावारिस है मेरी लाश भी !!!
बहुत ही मार्मिक शब्द ! और जिस घटना ने आपको ये शब्द लिखने को प्रेरित किया वो भी आँखों में आँखों में आंसू ला देती है !
मुजे ऐसे क्षणोमे सिर्फ भगवानही याद आते है! हे भगवान इस तरहसे तुम मेरे सामने आके क्या मेसेज देना चाहते हो, जरा सोचे मनुष्यकी यह करतुत है के भगवानकी जैसे कहरहा हो बच्चा तुम मुजे इस धरतीपे लाके क्या साबित करना चाहते हो। जहा तक देवी देवता के पुत्र पुत्री तो कुछ कारण वसहि जन्म लेते है।
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी पोस्ट।
ReplyDeleteसादर
बहुत मार्मिक \
ReplyDeleteनवरात्रि की हार्दीक शुभकामनाएं !
शुम्भ निशुम्भ बध -भाग ४