Monday, February 22, 2016

आरक्षण.....इक समस्या

जब हम अपने अधिकार की बात कर रहे होते हैं अपनी माँग की बात कर रहे होते हैं तो ऐसे में सवाल ये है कि हम अपने कर्तव्यों को क्यों भूल जाते हैं। क्यों भूल जाते हैं कि अधिकार और कर्तव्य साथ-साथ चलते हैं ?   
ये एक ही सिक्के के दो पहलु हैं? देश में आरक्षण की माँग को लेकर जाट समुदाय  का लगभग पाँच दिन से चल रहे आंदोलन का हिंसक हो जाना कितना सही है ? अपने स्वार्थहित में अंधे हुए अपने जिद्द पगलाए आंदोलनकारियों द्वारा  सरकारी, गैर-सरकारी संपत्ति की तोड़-फोड़, आगजनी लगातार जारी है। इस आंदोलन की आड़ में कुछ शरारती तत्वों ने भी लूटपाट, चोरी जैसे अपराधिक मंसूबो को अंजाम दिया। नेशनल हाईवे से लेकर रेलवे की पटरी सब पर कब्ज़ा जमाये बैठे इन लोगो को देश की आर्थिक क्षति की कोई चिंता नहीं।  देश के प्रति अपने कर्तव्यों को दरकिनार कर जाट समुदाय सिर्फ और सिर्फ अपने अधिकार के लिए संघर्षरत है सरकार और समुदाय के इस तना-तनी के बीच पूरा देश झेल रहा है।

 बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमने वाले कई किले ज़मीन का मालिक ये जाट समुदाय  अपने आप को पिछड़ा वर्ग साबित करने पर तुला है जो न ही पिछड़ी जाति  है न ही कमज़ोर अतीत में जाट जाति किसी भी अत्याचार का शिकार नहीं रहा न ही शैक्षणिक तौर पर पीछे है। आरक्षण पाने के मूलभूत आधार को ही जाट समुदाय पूरा नहीं करता। लेकिन फिर भी आरक्षण को अपना अधिकार बताने वाला ये समुदाय साम-दाम-दंड भेद की नीति का प्रयोग कर के सरकार को हामी भरवाने के लिए पूरी तरह विवश कर चुका है।

आरक्षण को जिस नेक विचार के साथ डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने संविधान में शामिल किया था उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि ये अस्थायी कानून एक दिन स्थायी अधिकार बन जाएगा। आरक्षण का आधार जाति है ही नहीं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। आज़ादी की पूर्व संध्या पर उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि आरक्षण को किसी न किसी दिन बंद तो होना ही है अगर यह स्थायी रहा तो पूरा उद्देश्य ख़त्म हो जाएगा। आरक्षण सिर्फ दस वर्ष के लिए लागू किया गया था पांच वर्षों के बाद हालात की समीक्षा किया जाना तय था लेकिन यह अवधि धीरे-धीरे अनुवर्ती सरकारों द्वारा वोट बैंक के लिए बढ़ाई जाती रही और आज़ादी के 69 सालों के बाद भी यह सिलसिला कभी ख़त्म नहीं हुआ। 

आज स्थिति यह है कि इसके ख़त्म होने की कोई संभावना ही नज़र नहीं आ रही। जैसे-जैसे आरक्षण ने अधिकार का रूप लिया जनता सड़को पर उतरने लगी प्रदर्शन करने लगी अब हर जाति, हर वर्ग अपने आपको कमज़ोर साबित करके इसपे अपना अधिकार जमाना चाहती है। अब आधार यह नहीं होगा कि आप मेरिट लिस्ट में हैं या नहीं बल्कि आधार आपकी जाति होगी अब वो दिन दूर नहीं जब लोग आरक्षण पाने के लिए जाति परिवर्तन कर लेंगे। 

संविधान के अनुसार केवल 50 प्रतिशत सीट ही आरक्षित किया जा सकता है।  सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसपर अपनी मुहर भी लगायी है। किसी विशेष परिस्थिति में ही स्पष्ट कारण दिखाकर सरकार 50 फ़ीसदी की सीमा रेखा को भी लांघा जा सकता है। जबकि राज्य के कानूनों ने इस सीमा को पार किया है और उनपर सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही भी चल रही है। इन सब के बावजूद लगातार आरक्षण की नज़ायक माँग को मनवाने के लिए हिंसात्मक तरीका अपनाया जाता रहा है। पहले गुर्जर, फिर पाटिल और एकबार दोबारा जाट समुदाय। इससे पहले भी जाट आरक्षण को नाजायज ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जाट समुदाय को दिए गए आरक्षण को रद्द कर दिया था। 

आरक्षण अब सुरक्षा नहीं बल्कि धीरे-धीरे एक विकराल समस्या बनती जा रही है। देश को रह-रह के बड़े-बड़े झटके लग रहे हैं। आम आदमी चूर-चूर हो रहा है। मुझे लगता है कि आरक्षण की जिस व्यवस्ता से देश बार-बार आहत हो रहा है जो देश को एक झटके में कई वर्ष पीछे ढकेल रहा है। बहुत ज़रूरी है कि ऐसी व्यवस्था को जड़ से ख़त्म कर दिया जाए । न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। 





परी ऍम. 'श्लोक'

Tuesday, February 16, 2016

प्यार की कोई भाषा नहीं दोस्तों

दूर होकर भी वो दरमियाँ रहता है
एक ज़ज़्बा है हरदम जवाँ रहता है 

प्यार की कोई भाषा नहीं दोस्तों
ये वो पंछी है जो बेजुबाँ  रहता है 

उस मुसाफ़िर से दिल तो लगाया मगर 
उससे पूछा नहीं वो कहाँ रहता है

आदमी इश्क़ में तन्हा होता नहीं 
याद  हो  दर्द  हो  कारवाँ रहता है 

ख़त्म होती नहीं कोई भी दास्ताँ 
आग बुझ जाती है तो धुआँ रहता है 

जिस तरह चाहिए काम ले लीजिये 
दिल मेरा आप पर मेहरबाँ रहता है 

सोती हूँ पत्थरों की ज़मीं पे तो क्या  
सर सितारों भरा आसमाँ रहता है 

आप खाली मकाँ मत मेरा देखिये 
आँखों में देखिये कहकशाँ रहता है 

आदमी तो गुज़र जाता है राह से  
पीछे क़दमों का लेकिन निशाँ रहता हैं 

©परी ऍम. 'श्लोक'