Sunday, May 31, 2015

सांवली लड़की को

समंदर दर्द का ओक में थामें 
सहरा-ए-ज़िन्दगी की प्यास बुझाते हुए 
घटायें पलकों के दरीचे पर टाँगे 
शब तन्हाइयों में किसी की याद पर गिराते हुए 
माथे से उदासियों का पसीना पोंछते हुए 
किसी शनासा शक्स को सोचते हुए 
स्याही पीते हुए हर्फ़ बहाते हुए 
कलम से तो कभी 
पन्नो को हाल-ए-दिल सुनाते हुए
किताबों के वरक़ पलट सिसकियाँ भरते हुए 
निगाहों के मकां में महज़ इंतज़ार रखे हुए 
चुपके से किसी के नाम का कलमा पढ़ते हुए 

उस सांवली लड़की को 
मैंने जब भी देखा है बस ऐसे ही देखा है 

मोहब्बत के उस एक रोज़ के बाद...... !!
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© परी ऍम. 'श्लोक' 

Saturday, May 30, 2015

ए पागल लड़की ................© परी ऍम. "श्लोक"

एक दिन मैंने प्यार में गुम हुई 
किसी लड़की को नसीहत दी थी 
उसे कहा था 
ए पागल लड़की 
इश्क़ में यकीन का दामन न छोड़ 
ज़रा सी ढील से एहसास बिगड़ जाते हैं 
जलन न रख वो गर तेरा है 
तो कोई तुझसे छीन नहीं सकता 
मुझे मालूम क्या था 
जिंदगी के अगले मोड़ पर 
उस लड़की से 
मेरी जगह बदल दी जायेगी 
और नसीहत देने वाली वो लड़की 
किसी के प्यार में गुमशुदा हो जाएगी !!

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© परी ऍम. "श्लोक"  

Sunday, May 17, 2015

गुलज़ार साहब के लिए ........ © परी ऍम. "श्लोक"

ज़ेहन जब भारी तबाही से गुज़रता है
मैं आकर ठहर जाती हूँ
तुम्हारी नज़्म की गुनगुनी पनाहों में
और खुद को महफूज़ कर लेती हूँ तमाम उलझनों से
आवाज़ जो हलकी सी मेरे जानिब आई थी कभी
उसे रखा है संभाल के कच्ची उम्र से अब तक
वक़्त बे-वक़्त पहन लेती हूँ उसे कानों में 
तुम्हारे ख़्यालों से उभरे हुए लव्ज़ों की रोशनी
अपनी आँखों से छूकर उतार लेती हूँ रगों में
गहरे एहसास में भीगें हुए पन्नों में डूबकर
मैं कुछ पल को भूल जाती हूँ ज़िन्दगी के सारे सितम

तुम्हें पढ़ती हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है
वरना.... दुश्वारियां बहुत है मेरे जीने में।

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© परी ऍम. "श्लोक"  

Thursday, May 14, 2015

उसके पास भी सांसें थी ....

उसके पास भी सांसें थी 
मगर वो अपने आपको रोज़ कोसता था 
तारों से शिफ़ा मांगता था 
आँखें थी मगर सपनें देखने से डरता था 
रोज़ पहुँच जाता था वो पागल 
सड़क के बीचो-बीच बागवानी करने 
ज़िन्दगी के हर दिन की कीमत अदा करने 
एक दिन फूल लगाने वाले उसके हाथों को 
कोई अन्धा मुसाफ़िर लेकर चला गया 
सुना है आज 
ख़ुदा ने उसकी गुज़ारिश भी सुन ली   
तेज़ रफ़्तार किसी गाड़ी के पहिये में 
बैठ के चला गया बिन बताए किसी को 
उसका पूरा घर उसे सफ़ेद चादर तले ढूंढ रहा है। 

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© परी ऍम. 'श्लोक'