समंदर दर्द का ओक में
थामें
सहरा-ए-ज़िन्दगी की प्यास
बुझाते हुए
घटायें पलकों के दरीचे
पर टाँगे
शब तन्हाइयों में किसी
की याद पर गिराते हुए
माथे से उदासियों का
पसीना पोंछते हुए
किसी शनासा शक्स को
सोचते हुए
स्याही पीते हुए हर्फ़
बहाते हुए
कलम से तो कभी
पन्नो को हाल-ए-दिल
सुनाते हुए
किताबों के वरक़ पलट
सिसकियाँ भरते हुए
निगाहों के मकां में
महज़ इंतज़ार रखे हुए
चुपके से किसी के नाम
का कलमा पढ़ते हुए
उस सांवली लड़की
को
मैंने जब भी देखा है बस
ऐसे ही देखा है
मोहब्बत के उस एक रोज़
के बाद...... !!
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© परी ऍम.
'श्लोक'