ज़ेहन
जब भारी तबाही से गुज़रता है
मैं
आकर ठहर जाती हूँ
तुम्हारी
नज़्म की गुनगुनी पनाहों में
और
खुद को महफूज़ कर लेती हूँ तमाम उलझनों से
आवाज़
जो हलकी सी मेरे जानिब आई थी कभी
उसे
रखा है संभाल के कच्ची उम्र से अब तक
वक़्त
बे-वक़्त पहन लेती हूँ उसे कानों में
तुम्हारे
ख़्यालों से उभरे हुए लव्ज़ों की रोशनी
अपनी
आँखों से छूकर उतार लेती हूँ रगों में
गहरे
एहसास में भीगें हुए पन्नों में डूबकर
मैं
कुछ पल को भूल जाती हूँ ज़िन्दगी के सारे सितम
तुम्हें
पढ़ती हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है
वरना.... दुश्वारियां बहुत है मेरे जीने में।
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परी ऍम. "श्लोक"
बेहतरीन रचना मन के भावो को अच्छी तरह शब्दों में पिरोया है
ReplyDeleteसुंदर समर्पित एहसास ! सुंदर रचना.
ReplyDeleteगुलज़ार की नज्में होती ही इतना खूबसूरत और दिल के करीब से लिखी होती हैं की उनमें डूबे बिना रह नहीं पाता इंसान ...
ReplyDeleteतुम्हें पढ़ती हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है
ReplyDeleteवरना दुश्वारियां बहुत है मेरे जीने में।
गुलज़ार साब ने लिखा है इसे या आपने इसे गुलजार नाम से लिखा है ? बहुत ही बेहतरीन तरीके से उपमाओं का इस्तेमाल किया है ! बेहद प्रभावी ! हिंदी विधा में ऐसे अनमोल मोती कम मिलते हैं !
बेहद खूबसूरत और दिल के करीब ! सच में गुलज़ार साहेब की हर रचना एक अलग ही दुनिया में ले जाती है !
ReplyDeleteतुम्हारी नज़्म की गुनगुनी पनाहों में
ReplyDeleteऔर खुद को महफूज़ कर लेती हूँ तमाम उलझनों से ।
.................बहुत खूब ।
गुलज़ार साहब को।पढ़ कर जो सुकूँ मिलता है मैं भी आप की तरह् उस का कायल हूँ ।
सुन्दर भावों का सहज प्रवाह
ReplyDeleteसुन्दर भावों का सहज प्रवाह
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteगुलजार सर! के अंदाज के क्या कहने..हम जैसे जाने कितनों के वो प्रेरणास्रोत है वो..
Deleteतुम्हें पढ़ती हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है
ReplyDeleteवरना.... दुश्वारियां बहुत है मेरे जीने में।
सुन्दर व सार्थक रचना...
सुंदर पेशकश !!
ReplyDeleteसराहनीय कविता |
ReplyDeleteमेरी ब्लॉग पर 'इंतज़ार' कविता पढ़ें ।
http://merisyahikerang.blogspot.in/2015/05/blog-post_25.html
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
बहुत खूब .....
ReplyDeleteहैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि गालिब का है अंदाज़े बयाँ और ।
खूबसूरत अभिव्यक्ति, उम्दा नज़्म
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