Sunday, May 17, 2015

गुलज़ार साहब के लिए ........ © परी ऍम. "श्लोक"

ज़ेहन जब भारी तबाही से गुज़रता है
मैं आकर ठहर जाती हूँ
तुम्हारी नज़्म की गुनगुनी पनाहों में
और खुद को महफूज़ कर लेती हूँ तमाम उलझनों से
आवाज़ जो हलकी सी मेरे जानिब आई थी कभी
उसे रखा है संभाल के कच्ची उम्र से अब तक
वक़्त बे-वक़्त पहन लेती हूँ उसे कानों में 
तुम्हारे ख़्यालों से उभरे हुए लव्ज़ों की रोशनी
अपनी आँखों से छूकर उतार लेती हूँ रगों में
गहरे एहसास में भीगें हुए पन्नों में डूबकर
मैं कुछ पल को भूल जाती हूँ ज़िन्दगी के सारे सितम

तुम्हें पढ़ती हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है
वरना.... दुश्वारियां बहुत है मेरे जीने में।

__________________
© परी ऍम. "श्लोक"  

17 comments:

  1. बेहतरीन रचना मन के भावो को अच्छी तरह शब्दों में पिरोया है

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  2. सुंदर समर्पित एहसास ! सुंदर रचना.

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  3. गुलज़ार की नज्में होती ही इतना खूबसूरत और दिल के करीब से लिखी होती हैं की उनमें डूबे बिना रह नहीं पाता इंसान ...

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  4. तुम्हें पढ़ती हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है

    वरना दुश्वारियां बहुत है मेरे जीने में।
    ​गुलज़ार साब ने लिखा है इसे या आपने इसे गुलजार नाम से लिखा है ? बहुत ही बेहतरीन तरीके से उपमाओं का इस्तेमाल किया है ! बेहद प्रभावी ! हिंदी विधा में ऐसे अनमोल मोती कम मिलते हैं !

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  5. बेहद खूबसूरत और दिल के करीब ! सच में गुलज़ार साहेब की हर रचना एक अलग ही दुनिया में ले जाती है !

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  6. तुम्हारी नज़्म की गुनगुनी पनाहों में
    और खुद को महफूज़ कर लेती हूँ तमाम उलझनों से ।
    .................बहुत खूब ।
    गुलज़ार साहब को।पढ़ कर जो सुकूँ मिलता है मैं भी आप की तरह् उस का कायल हूँ ।

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  7. सुन्दर भावों का सहज प्रवाह

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  8. सुन्दर भावों का सहज प्रवाह

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  9. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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    1. गुलजार सर! के अंदाज के क्या कहने..हम जैसे जाने कितनों के वो प्रेरणास्रोत है वो..

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  11. तुम्हें पढ़ती हूँ तो थोड़ा सुकून मिलता है
    वरना.... दुश्वारियां बहुत है मेरे जीने में।
    सुन्दर व सार्थक रचना...

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  12. सुंदर पेशकश !!

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  13. सराहनीय कविता |
    मेरी ब्लॉग पर 'इंतज़ार' कविता पढ़ें ।
    http://merisyahikerang.blogspot.in/2015/05/blog-post_25.html

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  14. बहुत ही सुन्दर
    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह

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  15. बहुत खूब .....

    हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे
    कहते हैं कि गालिब का है अंदाज़े बयाँ और ।

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  16. खूबसूरत अभिव्यक्ति, उम्दा नज़्म

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