रूह
जलती है दिल दुःखता है
याद
बन के वो जब उठता है
कितनी
बारिश ये सावन ले गुज़री
प्यास
दिल का मगर न बुझता है
आईना
हो गया है वज़ूद मेरा
लम्हों
की ठोकर से जो अब टुटता है
किसी
के हो नहीं पाये बरसो
कि
उनका घर तो रोज़ बसता है
मुझी
में टूट कर ज़मींदोज़ हुए
मेरे
अरमानों का भी कब्रिस्तां है
मेरे
माज़ी के वो पन्नें मत खोलो
हर
लव्ज़-ओ-स्याही से गम रिसता है
उनसे
रिश्ता है मेरी साँसों का,
जज़्बातों
का, एहसासों का
है
वो मेरी हर इक अदा, हर बयां में
है
वो मेरी हर इक शायरी और ग़ज़ल
कहो
मैं कहाँ पर छिपा लूँ उनको
जो
मेरी आँखों में साफ़ दिखता है
रूह
जलती है दिल दुःखता है।
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परी ऍम.'श्लोक'Meaning
माज़ी - अतीत (Past)