हम
दो अलग चेहरे दो शख़्स जुदा
हमारा
रिश्ता मानिंद इक बहता दरिया
दो जुदा कश्ती है हम
दोनों की तक़दीर
कौन
जाने किस लम्हा कौन डूबे
और
कौन पार लगे
कौन
वीरान रहे पूरे सफ़र में
कौन
भर जाए इस राह में मुसाफिरों से
कौन
जाने
किसकी
तक़दीर के हिस्से क्या आये
किसे
मिले वफ़ा के रंग जिंदगी में
कौन
प्यार की आस लिए ख़ाक हो जाए
न तू मेरी लकीर काट
सकता है
न मैं तेरी तक़दीर बाँट
सकती हूँ
एक
ही कोख़ से जन्में हुए माँ के बच्चें
कोई
हँसता है यहाँ तो कोई रोता है यहाँ
सबकी
तक़दीर एक जैसी होती है कहाँ।
©
परी ऍम. 'श्लोक'
Good afternoon my dear friend +pari m, shlok
ReplyDeleteNice post. & beautiful poem. It's always truth. 😊 😊
वक़्त की बात है सब ... सबका अपना अपना लेखा है ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना परी जी
ReplyDeleteभावपूर्ण ...हर कोई यहाँ भीड़ में अकेला ....मगर हर मोड़ पर एक नया सवेरा
ReplyDeleteकिसकी तक़दीर के हिस्से क्या आये
ReplyDeleteकिसे मिले वफ़ा के रंग जिंदगी में
कौन प्यार की आस लिए ख़ाक हो जाए
न तू मेरी लकीर काट सकता है
न मैं तेरी तक़दीर बाँट सकती हूँ
एक ही कोख़ से जन्में हुए माँ के बच्चें
कोई हँसता है यहाँ तो कोई रोता है यहाँ
सबकी तक़दीर एक जैसी होती है कहाँ।
सम्पूर्ण रूप में सही और सार्थक शब्द लिखे हैं आपने परी जी
एक ही कोख़ से जन्में हुए माँ के बच्चें
ReplyDeleteकोई हँसता है यहाँ तो कोई रोता है यहाँ
सबकी तक़दीर एक जैसी होती है कहाँ।
.......... सार्थक शब्द लिखे हैं आपने परी जी