Thursday, July 30, 2015

हम दो अलग चेहरे दो शख़्स जुदा

हम दो अलग चेहरे दो शख़्स जुदा
हमारा रिश्ता मानिंद इक बहता दरिया 
दो जुदा कश्ती है हम दोनों की तक़दीर
कौन जाने किस लम्हा कौन डूबे
और कौन पार लगे
कौन वीरान रहे पूरे सफ़र में
कौन भर जाए इस राह में मुसाफिरों से
कौन जाने
किसकी तक़दीर के हिस्से क्या आये 
किसे मिले वफ़ा के रंग जिंदगी में
कौन प्यार की आस लिए ख़ाक हो जाए
न तू मेरी लकीर काट सकता है 
न मैं तेरी तक़दीर बाँट सकती हूँ 
एक ही कोख़ से जन्में हुए माँ के बच्चें
कोई हँसता है यहाँ तो कोई रोता है यहाँ 
सबकी तक़दीर एक जैसी होती है कहाँ।



© परी ऍम. 'श्लोक'

6 comments:

  1. Good afternoon my dear friend +pari m, shlok
    Nice post. & beautiful poem. It's always truth. 😊 😊

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  2. वक़्त की बात है सब ... सबका अपना अपना लेखा है ...

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  3. बेहतरीन रचना परी जी

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  4. भावपूर्ण ...हर कोई यहाँ भीड़ में अकेला ....मगर हर मोड़ पर एक नया सवेरा

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  5. किसकी तक़दीर के हिस्से क्या आये
    किसे मिले वफ़ा के रंग जिंदगी में
    कौन प्यार की आस लिए ख़ाक हो जाए
    न तू मेरी लकीर काट सकता है
    न मैं तेरी तक़दीर बाँट सकती हूँ
    एक ही कोख़ से जन्में हुए माँ के बच्चें
    कोई हँसता है यहाँ तो कोई रोता है यहाँ
    सबकी तक़दीर एक जैसी होती है कहाँ।
    सम्पूर्ण रूप में सही और सार्थक शब्द लिखे हैं आपने परी जी

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  6. एक ही कोख़ से जन्में हुए माँ के बच्चें
    कोई हँसता है यहाँ तो कोई रोता है यहाँ
    सबकी तक़दीर एक जैसी होती है कहाँ।
    .......... सार्थक शब्द लिखे हैं आपने परी जी

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