Tuesday, July 21, 2015

आरज़ू तेरी

मौत आती नहीं रस्ते मेरे 
जिंदगी जीने नहीं देती मुझको 
ऐसे में ए मुहब्बत तुझे 
ख़ुशी का फ़रिश्ता समझा मैंने  
चंद लम्हों का तबस्सुम लब पे 
और ये शिकवा भी बेचैन दिल में 
तू आया कि बेहिसाब गम आये 
डसने लगी ये चुप सी तन्हाई
रोज़ नए ख़्वाब नींदों के दर पर आते 
और फिर यूँ होता कि 
आँख दरिया में डूब कर मर जाते
इक टूटा हुआ मकाँ और बेवा नसीब 
मोड़ दर्द के चंगुल नहीं कोई मंज़िल 
जिस रस्ते ले चली है मुझे आरज़ू तेरी ।  
____________________
© परी ऍम. ''श्लोक" 

12 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (22-07-2015) को "मिज़ाज मौसम का" (चर्चा अंक-2044) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. aap likhti rahe sab padhte rahege, talleen hokar :)

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  3. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति

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  4. रोज़ नए ख़्वाब नींदों के दर पर आते
    और फिर यूँ होता कि
    आँख दरिया में डूब कर मर जाते
    आपके शब्द स्वतः ही खींच लाते हैं ! एक अलग बात , अलग आकर्षण होता है आपके शब्दों में परी जी ! सुन्दर प्रस्तुति

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  5. आँख दरिया में डूब कर मर जाते
    इक टूटा हुआ मकाँ और बेवा नसीब
    मोड़ दर्द के चंगुल नहीं कोई मंज़िल
    ...बहुत खूब!

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  6. beautifully written with full of emotions.
    www.facebook.com/poetnitish

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  7. प्रेम दर्द तो देता है पर सकूं भी ... ये मंजिल काँटों भरी है ...

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  8. Very nice post ...
    Welcome to my blog on my new post.

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  9. सुन्दर प्रस्तुति

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  10. दिल से निकली मार्मिक अभिव्यक्ति।

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  11. सुन्दर प्रस्तुति -

    आरजू है मेरा आप आयें आंगन मेरे साहित्य साथ लेकर सुहाना लगे |
    लिखने की किसमें ताकत भला साहित्य सारा सुहाना सुगमता लिए ||

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