उस हरजाई का कोई पैग़ाम
नहीं आता
मैं त कती हूँ
राह मगर क्यूँ शाम नहीं आता
करती है लाखों
बातें आँखें उसकी मुझसे
जाने क्यूँ
लब पे ही मेरा नाम नहीं आता
होगी कुछ सच्चाई तो
कि धुआँ सा उठता है
यूँ ही तो
सर पर कोई इल्ज़ाम नहीं आता
तुमसे उल्फ़त ने
ही ये हाल किया है अपना
दिल की किस्मत में वरना शमशान नहीं आता
दूर खड़ा साहिल
पर बेहिस तकता है मुझको
हो मुश्किल चाहे कुछ
भी वो काम नहीं आता
ए इश्क़ तेरी
बस्ती को कर ले गम से खाली
इन गलियो में भी
दिल को आराम नहीं आता
कुछ दर्द जवां
होकर तकलीफ़ बहुत देते हैं
यूँ ही तो हाथों
में अपने ये जाम नहीं आता
© परी ऍम. 'श्लोक'
wah pari.....umda gazal
ReplyDeleteकुछ दर्द जवां होकर तकलीफ़ बहुत देते हैं
ReplyDeleteयूँ ही तो हाथों में अपने ये जाम नहीं आता
करती है लाखों बातें आँखें उसकी मुझसे
ReplyDeleteजाने क्यूँ लब पे ही मेरा नाम नहीं आता ...
बेहतरीन ग़ज़ल .... कमाल का शेर है ...
आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (08-07-2015) को "मान भी जाओ सब कुछ तो ठीक है" (चर्चा अंक-2030) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
हर शेर लाजवाब है.... ग़ज़ल की विधा के साथ भावों की अभिव्यक्ति लाजवाब ....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.. बधाई
ReplyDeleteतुमसे उल्फ़त ने ही ये हाल किया है अपना
ReplyDeleteदिल की किस्मत में वरना शमशान नहीं आता
दूर खड़ा साहिल पर बेहिस तकता है मुझको
हो मुश्किल चाहे कुछ भी वो काम नहीं आता
बेहतरीन ग़ज़ल .... कमाल का शेर है परी जी
इश्क़ तेरी बस्ती को कर ले गम से खाली
ReplyDeleteइन गलियो में भी दिल को आराम नहीं आता
कुछ दर्द जवां होकर तकलीफ़ बहुत देते हैं
यूँ ही तो हाथों में अपने ये जाम नहीं आता
...बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteBadhiya
ReplyDeleteहीरों की अंगीठी जलाइये जनाब
कोयलों की भूल जाइए
कोयले पे रोटियाँ पकती रहीं
आप हीरों पर पका दिखाइये जनाब |