पहली नज़र का
असर तो नहीं कह सकते
बातो का खिंचाव था
जिसने इस लोहे को
अपने चुंबकीय आकर्षण से
खींच लिया था
कोई अदृश्य तागा
बांधे जा रहा था संग
मेरी दिशा में उठे थे बादल
मगर उससे भीग रहे थे तुम भी
गर्जन सुना था तुमने जो
उससे बिजलियाँ चमकी थी
तुम्हारे भीतर भी...
मौन रातो के सीने पर लिख
कर रहे थे इज़हार...
किन्तु आज उन पलो से
तुम्हारे अस्वीकार ने
पछतावे के कटीले कंगन डाल दिए हैं
जो पहनु तो चुभें....
और
उतारूँ तो छील देते हैं मुझे !!
_________परी ऍम श्लोक
असर तो नहीं कह सकते
बातो का खिंचाव था
जिसने इस लोहे को
अपने चुंबकीय आकर्षण से
खींच लिया था
कोई अदृश्य तागा
बांधे जा रहा था संग
मेरी दिशा में उठे थे बादल
मगर उससे भीग रहे थे तुम भी
गर्जन सुना था तुमने जो
उससे बिजलियाँ चमकी थी
तुम्हारे भीतर भी...
मौन रातो के सीने पर लिख
कर रहे थे इज़हार...
किन्तु आज उन पलो से
तुम्हारे अस्वीकार ने
पछतावे के कटीले कंगन डाल दिए हैं
जो पहनु तो चुभें....
और
उतारूँ तो छील देते हैं मुझे !!
_________परी ऍम श्लोक