Wednesday, June 11, 2014

तेरी खता.....न मेरी खता....

वो ही कर गए किनारा हमसे..
जो कहते थे गम के साथी हैं...
मैं अगर हूँ चिराग अंधेरो का...
वो भी इस दिए भी बाती हैं....

मुझे न देखे तो उसे उलझन...
न मिले तो फिर बेताबी है...
वो जो कहता था मेरी गैरहाजिरी से...
उसकी जान निकल जाती है...

कैसे रोकूँ मैं अपने आंसू अब...
जो उसके नाम पे चली आती है...
ऐसे बेहिसाब वादो कि घटाओ पे...
मुझे कभी-कभी तो हसी आती है...

इस मोहोब्बत का सिला क्या है....
सवालो से तन्हाई गूँज जाती है.... 
भवर से पार लगती इक पल कश्ती....
दूसरे लम्हे में ही डूब जाती हैं.....

उठते हैं जब ये बुलबुले शिकवे के....
'श्लोक' फूक-फूक कर बुझाती हैं....
तेरी खता.....न मेरी खता....
तोहमत तकदीर को दे आती हैं !!!

______ग़ज़लकार: परी ऍम 'श्लोक'_______

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