एक वो रात थी
जब हम दोनों की आँखों
में
एक जैसे ख्वाब हुआ करते
थे
हमें एक-दूसरे से ज़रा
भी फ़ुरसत न होती थी
इसकदर एक-दूजे में हम
गुम हुआ करते थे
तुम मेरी साँसों की
ख़ुश्बू थे जाना
हम तुम्हारी धड़कनों की
सरगम हुआ करते थे
और …
एक ये रात है
जो शिकवों के झुरमुट से
बाहर नहीं आती
शाम ढलते ही
लवें दिल की घुटन से
बुझने लगती हैं
करवटें बदलते हुए अपने
बिस्तर पर
यही सोचती हूँ कि इस
साअत तुम्हें
ख़्याल मेरा आया भी
होगा
या फिर
वफ़ा मेरी नदारद
कर
धीरे…-धीरे… से मुझे
भूल रहे होगे
और
किसी गैर की बाहों में
तुम झूल रहे होगे
फ़क़त
एक वो रात थी
एक ये रात है
दोनों की शक्लें नहीं
मिलती आपस में !!
_________________
© परी ऍम. 'श्लोक'