हर
मंज़र का मिज़ाज़ कड़वा है
कुछ
धुंधलाई सी है ज़िन्दगी
आज
न तू नज़र आया मुझे
और
न तेरे आँखो में कहीं मैं दिखी
ख़्वाबों
के चेहरे का रंग उड़ गया
हकीकत
ने घूर कर कुछ यूँ देखा
ये
आसमान भी आज नीला नहीं
रात
सितारों की गुफ़तगू भी नहीं
आज
जाने क्यों इतना सन्नाटा है
मानिंद
मातम मना रहा है कोई
खिलौना
ज़ज़्बात का यहाँ-वहाँ बिखरा है
कोई
जिद्दी बच्चा बे-सबब रूठा है
कि
शायद आज मेरा दिल टूटा है !!
©
परी ऍम. 'श्लोक'
Beautiful expressions..and I can almost feel the pain..
ReplyDeleteYou are gifted with words Pari :)
दिल टूटने से थोड़ी तकलीफ तो हुई ।
ReplyDeleteलेकिन तमाम उम्र का आराम आगया ।
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परी जी दर्द को बहुत अच्छी रचना में ढाल दिया है आपने
दिल टूटने से थोड़ी तकलीफ तो हुई ।
ReplyDeleteलेकिन तमाम उम्र का आराम आगया ।
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परी जी दर्द को बहुत अच्छी रचना में ढाल दिया है आपने
टूटे दिल को थाम लो
ReplyDeleteबक्त मेहरबां होके फिर से लौटेगा
बहुत खूब परी जी।
ReplyDeleteसादर
सुंदर ।
ReplyDeleteफैवीकौल है ना :)
खिलौना ज़ज़्बात का यहाँ-वहाँ बिखरा है
ReplyDeleteकोई जिद्दी बच्चा बे-सबब रूठा है
वाह बहुत खुब।
दर्द का एहसास।
बधाई परी जी।
कि शायद आज मेरा दिल टूटा है !!....और आप का अंदाज़ अनूठा है ...सादर
ReplyDeleteगहरा एहसास ... बचे का रूठना और दिल का टूटना ... भोलेपन की न उम्मीदी ही तो है ...
ReplyDeleteबहुत खूब ..
सुन्दर कविता !
ReplyDeleteहर मंज़र का मिज़ाज़ कड़वा है
ReplyDeleteकुछ धुंधलाई सी है ज़िन्दगी
आज न तू नज़र आया मुझे
और न तेरे आँखो में कहीं मैं दिखी
ख़्वाबों के चेहरे का रंग उड़ गया
हकीकत ने घूर कर कुछ यूँ देखा
ये आसमान भी आज नीला नहीं
रात सितारों की गुफ़तगू भी नहीं
आज जाने क्यों इतना सन्नाटा है
मानिंद मातम मना रहा है कोई
खिलौना ज़ज़्बात का यहाँ-वहाँ बिखरा है
कोई जिद्दी बच्चा बे-सबब रूठा है
कि शायद आज मेरा दिल टूटा है !
बहुत गहरे एहसास और उतनी ही गहरे शब्द !
ये आसमान भी आज नीला नहीं
ReplyDeleteरात सितारों की गुफ़तगू भी नहीं
आज जाने क्यों इतना सन्नाटा है
अति सुन्दर दर्द की तस्वीर और आईना
मानिंद मातम मना रहा है कोई
खिलौना ज़ज़्बात का यहाँ-वहाँ बिखरा है
कोई जिद्दी बच्चा बे-सबब रूठा है
आज न तू नज़र आया मुझे
ReplyDeleteऔर न तेरे आँखो में कहीं मैं दिखी
ख़्वाबों के चेहरे का रंग उड़ गया
हकीकत ने घूर कर कुछ यूँ देखा
ये आसमान भी आज नीला नहीं
रात सितारों की गुफ़तगू भी नहीं
आज जाने क्यों इतना सन्नाटा है
सुन्दर अभिव्यक्ति ये सिलसिले चलते रहते है और ग़ज़ल गीत गुनगुनाते रहते है ..बधाई
सुन्दर रचना
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